मुद्रित पुस्तक संदर्शिका
वेब्सायिट के इस अनुभाग में सभी प्राप्त मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियाँ उपस्थित हैं।- यहाँ रचनावों को भाषानुसार दो भागों मे बाँटा गया है – बँगला एवं अंग्रेज़ी
- प्रत्येक भाग में छवियों को निम्नलिखित अनुभागों में विभक्त किया गया है –
- रचनावली। विश्वभारती द्वारा प्रकाशित रवीन्द्ररचनावली के प्रमुख ३२ खण्डों की और अचलित संग्रह के २ खण्डों की छवियाँ। अंग्रेज़ी लेखों में ऐसा कोई अनुभाग नहीं है।
- संकलन। जो रचनायें पहले किसी अन्य ग्रन्थ में प्रकाशित हुवी थीं, उनका संकलन। अंग्रेज़ी लेखों में ऐसा कोई अनुभाग नहीं है।
- कविता एवं गीत
- नाटक
- छोटी कहानी एवं उपन्यास
- निबंध
- वेब्सायिट के ठीक पन्ने खुलने पर, इच्छित रचना को चुनने के लिये, वर्णक्रमानुसारी मेन्यू पर क्लिक करके मेन्यू में अपेक्षित रचना को क्लिक करें, अथवा इलेक्ट्रॉनिक खोज डिब्बे में रचना-शीर्षक टाइप करें।
- जब अपेक्षित रचना मिल जायें, तब उसपर क्लिक करने से उस संस्करण की छवियाँ देखी जा सकती हैं। छवियों का परिचालन करने के दो उपाय हैं –
- कुंजीपटल द्वारा
- औज़ार पिटारा (टूलबार) द्वारा – पिटारा खोलने के लिये दाईं तरफ में दिया गया टूलबार चिह्न पर क्लिक करें।
- पूरे पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित पाठों को दिखाना इस पन्ने का उद्देश्य है। विशिष्ट रचनावों को वेब्सायिट के ‘कृतिसूची’ भाग से देखना सबसे आसान है। तो भी पत्रिकावों में प्रकाशित किसी भी विशिष्ट कहानी को ‘গল্প’ पर क्लिक करके पाया जा सकता है। खैर, विशिष्ट पाठों को वेब्सायिट के ‘कृति सूची’ विभाग से आसानी से पाया जा सकता है। वेब्सायिट के इस विभाग में कुछ अधिक सूचनायें भी दी गयी है।
- कुंजीपटल द्वारा छवियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं –
कुंजीपटल परिचालन Home प्रथम पृष्ठ दिखायें End अंतिम पृष्ठ दिखायें Backspace पिछला पृष्ठ दिखायें Enter अगला पृष्ठ दिखायें ↑ (ऊर्ध्वमुखी तीर) पृष्ठ में उपर की तरफ़ जायें ↓ (अधोमुखी तीर) पृष्ठ में नीचे की तरफ़ जायें ← (वाममुखी तीर) पृष्ठ में बाईं ओर जायें → (दक्षिणमुखी तीर) पृष्ठ में दाईं तरफ़ जायें + पृष्ठ को बड़ा करें (zoom in) - पृष्ठ को छोटा करें (zoom out)
प्रतिलिपि प्रणाली
पाण्डुलिपि एवं मुद्रित पाठों के सामान्य नियम
हर पाण्डुलिपि और मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका की छवियों के अलावा हर पाठ की प्रतिलिपि .txt UTF-8 फायिल के रूप में पाठकों के लिये प्रस्तुत है। इनको देखने के लिये वेब्सायिट के 'कृति सूची / संपूर्ण तालिका' अनुभाग की तालिका में अथवा 'पाठान्तर' अनुभाग की तालिका में चिह्न पर क्लिक करें।
प्रतिलिपियाँ छवियों के पास दाहिने तरफ़ प्रकट होंगी। तालिका में अगर किसी भी पाठ के पासवाली कोष्ठिकावों में चिह्न या चिह्न न हों, तो वह पाठ हमें प्राप्त नहीं है।
प्रतिलिपि पद्धति : मानकीकरण
पाठकों की सुविधा के लिये एवं पाठान्तर सॉफ्टवेयर व्यवस्था के लिये हर प्रतिलिपि की तैयारी में कुछ सामान्य नियमों का प्रयोग किया गया है। इसके कारण यदा कदा कुछ मूल पाण्डुलिपि एवं पुस्तक के पाठ-विन्यास में परिवर्तन करना पड़ा। पर मूल पाठ-विन्यास छवियों में देखा जा सकता है।
- मुद्रित पुस्तक के प्रारंभ एवं अंत में दिये गये संदेश एवं जानकारी – जैसे कि आख्या पृष्ठ पर, मुख पृष्ठ पर, समर्पण पृष्ठ पर, विषय सूची में इत्यादि - की प्रतिलिपियाँ अक्सर नहीं बनायी गयी वरना पाठान्तर सॉफ्टवेयर द्वारा प्राप्त प्रतिफल भ्रामक साबित हो सकते थे। पुस्तक के अंत में दी गयी पुष्पिका की भी प्रतिलिपि नहीं बनायी गयी है। यह सब चीज़ें पुस्तक की छवियों मे देखी जा सकती हैं।
- पंक्तियों, पद्यों एवं संलापों के बीच में अंतराल :
- कविता के दो पद्यों के बीच में एक लायिन का अंतराल रखा गया है, लेकिन गद्य के दो अनुच्छेदों के बीच कोई लायिन-अंतराल नहीं है। जहाँ पद्यों का विभाजन स्पष्ट नहीं है, वहाँ हमने विभाजन अपनी समझ के मुताबिक किया हैं।
- जिन नाटकों में गद्य और पद्य दोनों उपस्थित हैं, वहाँ संलापों के बीच में एक लायिन-अंतराल रखा गया है, लेकिन केवल गद्य-नाटकों में ऐसा नहीं किया गया है। इसका कारण है कि पाठान्तर सॉफ्टवेयर में गद्य और पद्य के लिये अलग अलग पदच्छेद एवं पदव्याख्या (parsing) के नियम स्थित एवं प्रयुक्त हैं।
- शीर्षकों, नाट्यनिर्देशों आदि के अंतरालों के विषय में, कभी कभी मूल विन्यास और प्रतिलिपि विन्यास में कुछ भेद हैं। मूल विन्यास छवियों से समझा जा सकता है।
- किसी पंक्ति के आरंभ तथा मध्य में अंतराल :
- गद्य में हर अनुच्छेद बाँयें हाशिये या किनारे से शुरु किया गया है
- पद्य की हर पंक्ति बाँयें हाशिये से शुरु की गयी है (चाहे मूलरूप में हाशिये से थोड़ी जगह क्यों न छुड़ी हुवी हो )
- किसी पद्य की पंक्ति के बीच अगर अवकाश हो, तब हैश चिह्न (#) का प्रयोग किया गया है। जहाँ पंक्ति-मध्य अवकाश स्पष्ट नहीं है, वहाँ हम अपनी समझ के अनुसार अवकाश कभी कभी अंकित किये हैं।
- नाट्य निर्देश, वक्तावों के नाम आदि
- नाटक का अंक एवं दृश्यांक, दृश्य के प्रारंभ में स्थान एवं काल का उल्लेख, उपस्थित पात्रों-चरित्रों के नाम, नाट्य निर्देश, संलाप में वक्तावों के नाम इत्यादि, इनको प्रतिलिपि में एक-समान तरीके से लिखा गया है।
- वक्ता के नाम और उसकी वक्तृता को एक ही लायिन में लिखा गया है।
- रचना स्थान, रचना काल एवं रचना तिथि (जो आम तौर पर रचना के अंत में मिलते हैं ) हर बार एक समान रूप से विन्यस्त किये गये हैं।
- जहाँ डिजिटल छवि में पाठ साफ़ साफ़ पढ़ा नहीं जा सका ( आम तौर पर क्षतिग्रस्त पन्नों के कारण ) वहाँ संदेह संकेत करने के लिये पाठ को « » चिह्नों के बीच रखा गया है।
- छापे की अशुद्धियों को प्रतिलिपियों में वैसे के वैसे ही रखा गया है, लेकिन औंधे-उलटे अक्षरों या टाइपों का संशोधन किया गया है।