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বিচিত্রা: বৈদ্যুতিন রবীন্দ্র-রচনাসম্ভার

Bichitra: Online Tagore Variorum :: School of Cultural Texts and Records

विचित्रा: इलेक्ट्रॉनिक रवीन्द्ररचनावली :: स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डज़

 
 

संदर्शिका

  1. वेब्सायिट में रचनायें सम्मिलित करने के नियम
    1. वेब्सायिट में शामिल रचनायें
    2. वेब्सायिट में नहीं मिलेंगे
    3. पाठरूप एवं संस्करण
    4. खोज व्यवस्था
    5. पाठान्तर व्यवस्था
  2. कुंजीपटल प्रयोग
  3. कंप्यूटर अनुकूलता
  4. प्रतिलिपि प्रणाली
    1. पाण्डुलिपि एवं मुद्रित पाठों के सामान्य नियम
      1. प्रतिलिपि पद्धति : मानकीकरण
    2. पाण्डुलिपि प्रतिलिपि प्रणाली के कुछ विशेष नियम
      1. समूचे पाण्डुलिपि के पन्नों की क्रमानुसार प्रतिलिपि
      2. पाण्डुलिपि में उपस्थित रचनावों के अंतिम पाठरूप
    3. पाण्डुलिपि-प्रतिलिपि पद्धति
    4. पाण्डुलिपि प्रतिलिपियों में प्रयुक्त चिह्न
  5. संग्रह सर्वेक्षण – पाण्डुलिपि
    1. पाण्डुलिपि सूची
    2. शीर्षक सूची
    3. पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ
  6. संग्रह सर्वेक्षण – मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका
  7. कृति सूची
    1. वर्णक्रमानुसारी सूची
    2. संपूर्ण तालिका
    3. अन्य सूचियाँ
    4. कालक्रमानुसारी सूची
  8. खोज
    1. सम्मिलित पाठरूप
    2. कार्य प्रणाली
  9. पाठान्तर
    1. त्रिस्तरीय पाठान्तर
    2. प्रभेद कार्य-प्रणाली
      1. अंश स्तरीय पाठान्तर
      2. उपांश स्तरीय पाठान्तर
      3. शब्द स्तरीय (सूक्ष्म) पाठान्तर
    3. मेल-प्रतिशत विधि

वेब्सायिट में रचनायें सम्मिलित करने के नियम

वेब्सायिट में शामिल रचनायें

इस वेब्सायिट में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की हर बंगला एवं अग्रेज़ी रचना मौजूद है। विश्वभारती की रवीन्द्ररचनावली के अनुसार इन रचनावों को चार विधावों मे बाँटा गया है। यह चार विधायें हैं : कविता एवं गीत, नाटक, छोटी कहानी एवं उपन्यास, और निबंध। निम्नलिखित सूत्रों से प्राप्त सब पाठ यहाँ शामिल किये गये हैं -   

इस वेब्सायिट में रवीन्द्रनाथ के निम्नलिखित लेख नहीं मिलेंगे

पाठरूप एवं संस्करण

प्रत्येक रचना के निम्नलिखित पाठरूपों और संस्करणों को, प्राप्त होने पर, वेब्सायिट में सम्मिलित किया गया है  । इनको खोज निकालने का एवं इनकी छवियाँ लेने का हमने पूरा प्रयास किया। रवीन्द्रभवन संग्रह में सब पाण्डुलिपियों की और अधिकांश मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की डिजिटल छवियाँ उपलब्ध कराने के लिये, रवीन्द्र भवन, शान्तिनिकेतन के प्रति, राजा राममोहन राय फाउण्डेशन के प्रति, और सी-डैक, कोलकाता के प्रति हम अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।  रॉथिंस्टायिन संग्रह में रवीन्द्रनाथ की हर पाण्डुलिपि की डिजिटल छवियाँ उपलब्ध कराने के लिये हम हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ह्यूटन पुस्तकालय के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी, हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं – इसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं।
मुद्रित पुस्तकों के विषय में हमने हर संस्करण की प्राथमिक छपाई का ही उपयोग किया है। प्राथमिक छपाई मिलने पर, हमने अतिरिक्त छपाई का उपयोग नहीं किया है।
इन प्रतिबंधों का मान करते हुवे, पूर्वोक्त रचनावों के निम्नलिखित पाठरूपों एवं संस्करणों को हमने सम्मिलित किया है  -

खोज व्यवस्था

हमारी खोज व्यवस्था में पाठों के केवल निम्नलिखित पाठरूप शामिल हैं:

बँगला

अंग्रेज़ी

पाठान्तर व्यवस्था

प्रत्येक रचना के प्रत्येक मुद्रित पाठरूप, और पाण्डुलिपियों में कार्यविधि-उपयुक्त प्रत्येक हस्तलिखित पाठरूप, हमारी पाठान्तर व्यवस्था में कार्यान्वित हैं  । पाठान्तर व्यवस्था में सम्मिलित नहीं किये गये हैं:

यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि उपर्युक्त इन पाठरूपों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ वेब्सायिट में मौजूद हैं।

कुंजीपटल प्रयोग

बँगला लिपि के अक्षरों एवं युक्ताक्षरों के लिये अभ्र कुंजीपटल प्रणाली (Avro keyboard) का उपयोग किया गया है।   पाठकों को यह सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने का हम परामर्श देते हैं।   तथा इसी लिप्यंतरण पद्धति के अनुसार बँगला अक्षरों के लिये  साधारण अंग्रेज़ी अक्षरों (यानी रोमन लिपि के अक्षर) का भी उपयोग किया जा सकता है। पद्धति के नियमों का विवरण वेब्सायिट के संबंधित पन्ने पर दिया गया है।

कंप्यूटर अनुकूलता


यद्यपि इस वेब्सायिट को देखने-पढ़ने के लिये किसी खास संगणनक (कम्प्यूटर) की ज़रूरत नहीं है, तथापि पाठकों को इन सलाहों से फायदा हो सकता है –

किसी भी बँगला कुंजीपटल व्य्वस्था की आवश्यकता नहीं है। वेब्सायिट में उपस्थित रोमन-बँगला लिप्यंतरण व्यवस्था अभ्र कुंजीपटल (Avro Keyboard) की पद्धति के अनुसार काम करती है। इसलिये पाठकों से निवेदन है कि वे इस लिप्यंतरण पद्धति से सुपरिचित हो।

प्रतिलिपि प्रणाली

पाण्डुलिपि एवं मुद्रित पाठों के सामान्य नियम

हर पाण्डुलिपि और मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका की छवियों के अलावा हर पाठ की प्रतिलिपि .txt UTF-8 फायिल के रूप में पाठकों के लिये प्रस्तुत है। इनको देखने के लिये वेब्सायिट के 'कृति सूची / संपूर्ण तालिका' अनुभाग की तालिका में अथवा 'पाठान्तर' अनुभाग की तालिका में
 
चिह्न पर क्लिक करें।
प्रतिलिपियाँ छवियों के पास दाहिने तरफ़ प्रकट होंगी। तालिका में अगर किसी भी पाठ के पासवाली कोष्ठिकावों में
 
चिह्न या
 
चिह्न न हों, तो वह पाठ हमें प्राप्त नहीं  है।

प्रतिलिपि पद्धति : मानकीकरण
पाठकों की सुविधा के लिये एवं पाठान्तर सॉफ्टवेयर व्यवस्था के लिये हर प्रतिलिपि की तैयारी में कुछ सामान्य नियमों का प्रयोग किया गया है। इसके कारण यदा कदा कुछ मूल पाण्डुलिपि एवं पुस्तक के पाठ-विन्यास में परिवर्तन करना पड़ा। पर मूल पाठ-विन्यास छवियों में देखा जा सकता है।

पाण्डुलिपि प्रतिलिपि प्रणाली के कुछ विशेष नियम

हर पाण्डुलिपि की छवियों के अलावा उसकी प्रतिलिपि भी .txt UTF-8 फायिल के रूप में पाठकों के लिये प्रस्तुत है। पाण्डुलिपि प्रतिलिपियों को पेश करने के दो तरीके अपनाये गये हैं –

समूचे पाण्डुलिपि के पन्नों की क्रमानुसार प्रतिलिपि

इस प्रस्तुति में पाण्डुलिपि के प्रथम पन्ने से अंतिम पन्ने तक की  प्रतिलिपि क्रमानुसार की गयी है (अर्थात् जिस वर्तमान क्रम  में पन्नें आबद्ध हैं )। चूँकि कोई-कोई रचनावों के अंश एक ही पाण्डुलिपि में अलग अलग स्थानों में बिखरे हुवे हैं, और कभी कभी अन्य रचनावों के पाठों के बीच लिखे हुवे हैं, इसलिये  इस प्रतिलिपि में किसी विशिष्ट रचना-पाठ को क्रमानुसार पढ़ना पाठकों के लिये कठिन हो सकता है। दरअसल पाण्डुलिपियों में हाथ की लिखावट पढ़नें में और लोपन एवं संयोजन इत्यादि समझनें मे पाठकों की सहायता करना ही इस प्रतिलिपि का मुख्य उद्देश्य है।  इस लिये इन प्रतिलिपियों को छवियों के पास एवं छवियों के साथ प्रदर्शित किया गया है।   पाण्डुलिपि में किये गये लोपनों, संयोजनों और अन्य परिवर्तनों को सूचित करने के लिये निम्नांकित चिह्नों का प्रयोग किया गया है।   यह प्रतिलिपि, कुछ हद तक, संबंधित पाण्डुलिपि में उपस्थित रचना-विकास का निरूपण करती है।

पाण्डुलिपि में उपस्थित रचनावों के अंतिम पाठरूप।

हमारे अनोखे  'फिल्टर सॉफ्टवेयर' के ज़रिये, पाण्डुलिपि में लोपनों, संयोजनों और अन्य परिवर्तनों को छानकर उस पाण्डुलिपि के अनुसार हर रचना का जो अंतिम पाठरूप प्राप्त होता है, उस पाठरूप की प्रतिलिपि भी उपलब्ध है।  

पाण्डुलिपि - प्रतिलिपि पद्धति

पाण्डुलिपि में য়, র, ড়, ঢ় इत्यादि अन्य अक्षरों में बिन्दी को, गायब होने पर, ठीक जगह बिठाया गया है। इस ही तरह से लिखाई में आयें कुछ कुछ छोटे छोटे भूलों को चुपचाप संशोधित किया गया है। लिखाई के एवं मुद्रन के भूलों को प्रतिलिपि में वैसे के वैसे ही प्रस्तुत करने के नियम का यह एकमात्र उल्लंघन है।

पाण्डुलिपि प्रतिलिपियों में प्रयुक्त चिह्न

SignNote/Explanation
<पाठ>लोपित पाठ
{पाठ}संयोजित पाठ
+++अस्पष्ट या अपठनीय पाठ
±पाठ±पाठ जिसका स्थान अनिश्चित है
৲पाठ १৲  पाठ२ पाठ२ पाठ२ ৴पाठ ३৴स्थानांतरित पाठ
[\पाठ\]रेखांकित पाठ
⋋पाठरूप १⋋ ⋌पाठरूप २⋌एक साथ एक ही रचनांश के दो पाठरूप
≮पाठ≯stet: पूर्वलोपित पाठ का पुनःप्रयोग
[~हाशिये में पाठ]  प्रचलित पाठ [~]हाशिये में लिखा पाठ
<⋏⋏> OR {⋏पाठ⋏} OR <⋎⋎> OR {⋎पाठ⋎} पाण्डुलिपि में जहाँ रेखा, तीरचिह्न, या तारक चिह्न का प्रयोग से किसी छोटे पाठांश (शब्द/वाक्यांश/वाक्य) का स्थानांतरण संकेत किया गया है, वहाँ:
  1. अगर पाठांश को उपर की तरफ़ स्थानांतरित किया गया है, तब
    पुराने (नीचे वाले) स्थान में <⋏⋏> चिह्न दिये गये हैं (इन कोष्ठकों मे पाठ नहीं रखा गया है), और
    नये (उपर वाले) स्थान में {⋏पाठ⋏} चिह्न देकर, चिह्नों एवं कोष्ठकों के बीच स्थानांतरित पाठ रखा गया है।
  2. अगर पाठांश को नीचे की तरफ़ स्थानांतरित किया गया है, तब
    पुराने (उपर वाले) स्थान में <⋎⋎> चिह्न दिये गये हैं (इन कोष्ठकों मे पाठ नहीं रखा गया है), और
    नये (नीचे वाले) स्थान में  {⋎पाठ⋎} चिह्न देकर, चिह्नों एवं कोष्ठकों के बीच स्थानांतरित पाठ रखा गया है।
  3. अगर एक ही पन्ने पर एक से अधिक पाठांश स्थानांतरित किये गये हैं, तब उनको क्रमानुसार <⋏1⋏>, <⋏2⋏>, <⋏3⋏>  इत्यादि संख्यांकित किया गया है।  
ORयदि किसी लम्बे-बड़े पाठांश को स्थानंतरित किया गया है, तब:
  • अगर पाठांश को उपर ले जाया गया है तब नये (उपर वाले) स्थान में ⋀ चिह्न रखा गया है
  • अगर पाठांश को नीचे ले जाया गया है तब नये (नीचे वाले) स्थान में ⋁ चिह्न रखा गया है
पुराने स्थान को किसी भी तरह से चिह्नित नहीं किया गया है
पाण्डुलिपि में ∟ चिह्न या एक लम्बा खड़ीपाई-जैसा चिह्न पंक्ति विच्छेदन एवं अनुच्छेद विच्छेदन संकेत करता है। इनको पाण्डुलिपि में मिलने पर, प्रतिलिपि में अगले पाठांश को सीधे अगले लायिन या अगले अनुच्छेद में रखा गया है, और उस नये लायिन या अनुच्छेद की शुरुआत में ∟ चिह्न दिया गया है।

संग्रह सर्वेक्षण – पाण्डुलिपि

वेब्सायिट के इस अनुभाग में प्रत्येक पाण्डुलिपि की छवियाँ एवं उसकी प्रतिलिपि प्रस्तुत हैं।

  इस भाग में बँगला और अंग्रेज़ी रचनावों को अलग अलग नहीं किया गया है क्योंकि अक्सर एक ही पाण्डुलिपि में दोनों भाषावों के लेख मिलते हैं।


पाण्डुलिपियों में चार हिस्से हैं -
  1. RBVBMS: विश्वभारती के रवीन्द्रभवन में मूल पाण्डुलिपि संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
  2. BMSF: रवीन्द्रभवन में ‘बँगला पाण्डुलिपि फायिलें’ (Bengali Manuscript Files) संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
  3. EMSF: रवीन्द्रभवन में ‘अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि फायिलें’ (English Manuscript Files) संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
  4. HRVD: हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ह्यूटन पुस्तकालय में रॉथिंस्टायिन संग्रह की पाण्डुलिपियाँ

इन पुस्तकालयों द्वारा दी गयी पाण्डुलिपि-संख्या को हमने बनाये रखा है।

पाण्डुलिपियों की छवियों एवं प्रतिलिपियों को देखने के दो तरीके हैं :

पाण्डुलिपि सूची

  1. पाण्डुलिपि सूची पर क्लिक करें। एक तालिका प्रकट होगी जिसके प्रथम (बाँयें) खाने में पूरी पाण्डुलिपि सूची उपस्थित होगी। कौन सी पाण्डुलिपि में किन किन रचनायें उपस्थित है, यह जानकारी अन्य स्तंभों से पाठक को प्राप्त होगी।
  2. इच्छित पाण्डुलिपि-संख्या पर क्लिक करें। एक पत्ता सामने खुलेगी जिस में उद्दिष्ट पाण्डुलिपि की छवि एवं प्रतिलिपि पास-पास दिखेंगी। छवियों का परिचालन करने के दो उपाय हैं –
    • कुंजीपटल द्वारा
    • औज़ार पिटारा (टूलबार) द्वारा – पिटारा खोलने के लिये दाईं तरफ में दिया गया टूलबार चिह्न पर क्लिक करें।
  3. कुंजीपटल द्वारा छवियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं –
    कुंजीपटलपरिचालन
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    → (दक्षिणमुखी तीर)पृष्ठ में दाईं तरफ़ जायें
    +पृष्ठ को बड़ा करें (zoom in)
    -पृष्ठ को छोटा करें (zoom out)
  4. कुंजीपटल द्वारा प्रतिलिपियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं
  5. कुंजीपटलपरिचालन
    Pg Upपृष्ठ के उपरी भाग में जायें
    Pg Dnपृष्ठ के निचले भाग में जाये
    Ctl+लिपि के आकार को बड़ा करें
    Ctl-लिपि के आकार को chota करें
    स्पेस बारप्रतिलिपि दिखायें / प्रतिलिपि छिपायें
  6. प्रतिलिपि में प्रयुक्त चिह्नों की व्याख्या के लिये 'Help'  बटन पर क्लिक करें।

 

शीर्षक सूची

इस सूची से पाण्डुलिपियों में अभिज्ञात रचनावों के ठिकानों की जानकारी प्राप्त होती है।

पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ

‘पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ ’ पर क्लिक करने के बाद पाण्डुलिपि सूची से इच्छित पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ देखी जा सकती हैं।

 

संग्रह सर्वेक्षण – मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका

वेब्सायिट के इस अनुभाग में सभी प्राप्त मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियाँ उपस्थित हैं।

कृति सूची

विकल्प मेन्यू से पहले भाषा (बँगला या अंग्रेज़ी) चुनें, और फिर इच्छित रचना-विधा। प्रत्येक रचना-विधा (कविता एवं गीत, नाटक इत्यादि) के लिये, कृति सूची को दो तरीकों से पेश किया गया है।

(क) वर्णक्रमानुसारी सूची

रंगाकन उपर्युक्त खुले छोटे पन्ने में, जिस पाठरूप-नाम का रंग काला है, वह पाठरूप वेब्सायिट में सम्मिलित है। जो पाठरूप-नाम का रंग लाल है, वह पाठरूप वेब्सायिट में मौजूद नहीं है – यानी उस पाठरूप की छवियाँ, प्रतिलिपि एवं पाठ-भेद वेब्सायिट में नहीं मिलेंगे।
हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं।

(ख) संपूर्ण तालिका

इस तालिका में प्रत्येक रचना का विवरण दिया गया है। तालिका के अलग अलग डिब्बों में, निम्नांकित चिह्नों का प्रयोग हुआ है –

जिस पाठरूप के नाम के पास उपर्युल्लेखित कोई भी चिह्न न हो, वह पाठरूप की छवियाँ हमें प्राप्त नहीं हो पायी, तथा उसकी प्रतिलिपि एवं पाठान्तर भी वेब्सायिट में अनुपलब्ध हैं।

(ग) अन्य सूचियाँ

संपूर्ण बंगला सूची में प्रत्येक विधा का एक तीसरा भाग भी है - अन्य सूचियाँ । रचनावों के पर्यायी शीर्षकों की खोज इन अन्य सूचियों द्वारा की जा सकती है । बंगला ‘छोटी कहानी एवं उपन्यास’ वाले भाग में अन्य सूचियों की तहत ‘सूची’ के उपभाग में छोटी कहानियों के संकलन की सूची भी प्राप्य है ।

इन अन्य सूचियों में किसी रचना की खोज करने, पहले CTL+F (P.C.) या CMD+F (Mac) दबायें । एक छोटा डिब्बा खुलेगा जिसमें रचना का नाम टाइप किया जा सकता है । अगर उस रचना का नाम पाया जायें तो वह रंगांकित होकर आसानी से पाठक को दिखेगा ।

(घ) कालक्रमानुसारी सूची

संपूर्ण बंगला सूची के इस भाग में प्रकशित पत्रिकावों एवं प्रकशित पुस्तकों की प्रकाशन तिथि के आधार पर एक समयानुसारी सूची प्राप्य है । इस सूची को काम में लाने के लिये दो तरीके है ।

हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं।

  सूचना: – इछित रचना का प्रकाशन-इतिहास तथा पाठरूपों की छवियों एवं प्रतिलिपियों को तेज़ी से पाने के लिये ‘वर्णक्रमानुसारी सूची’ देखें। रचना संबिधित पूरी उपलबध जानकारी पाने के लिये ‘संपूर्ण तालिका’ देखें।

खोज

सम्मिलित पाठरूप

हमारी खोज व्यवस्था में केवल निम्नलिखित पाठरूप उपलब्ध है –
बँगला

अंग्रेज़ी

कार्य प्रणाली

पाठान्तर

त्रिस्तरीय पाठान्तर

हमारा प्रभेद सॉफ़्टवेयर किसी भी रचना के अलग अलग पाठरूपों/संस्करणों को तीन-तीन स्तरों में मिलाता है – अंशों (sections) एवं उपांशों (segments) का स्थूल पाठान्तर (‘gross’ or macro-collation) किया जाता है, और शब्दों का सूक्ष्म पाठांतर (‘fine’ or micro-collation) किया जाता है।

टिप्पणी – जिस तरीके से किसी लम्बी रचना का विभाजन किया जाता है, उसके कारण कभी कभी अध्याय, दृश्य इत्यादि के जिन अनुभागों को बीच एक लायिन अंतराल रखा गया है (जैसे कि किसी गद्यरचना में उपस्थित कविता के पद्यों के बीच), उन अनुभागों को प्रभेद के चलन में अलग अलग भागों या अंशों जैसे दिखाया जा सकता है।  

जिस कविता या गीत में कोई भी पद्य विभाजन नहीं है, उस कविता या गीत को एक ही उपांश के रूप में प्रस्तुत किया गया है, यानी उसके अंश और उपांश को एक ही माना गया है।   

प्रभेद कार्य - प्रणाली

(टिप्पणी - सोफ्टवेयर की खातिर इस भाग में सब शीर्षक, प्रतिफल (results या output) इत्यादि को रोमन लिपि में लिखना पड़ा। )  

अंश स्तरीय पाठान्तर

नीचे तख्ते में किसी अन्य पाठ पर क्लिक करने से, दाईं तरफ एक रंगीन खड़ा तख्ता प्रकट होगा जिसमें बुनियादी पाठ के उपांशों और इस दूसरे चयनित पाठ के उपांशों को मिलाकर दिखाया जायेगा। जो उपांश मिलते हो, उनको भूरे रंग की डोरी से जोड़ा जयेगा।

उपांश स्तरीय पाठान्तर

छोटी कवितावॉं, छोटे गीतों एवं छोटे निबंधों का एक ही उपांश होने के कारण, उनकी पट्टियों में विभाजन (खंड) नहीं होंगे।
पट्टियों के खंड शून्य से शुरु होकर क्रमांकित भी है, जैसे कि 1316/0/0 का मतलब हुवा उद्दिष्ट रचना के 1316 बं सं वाले संस्करण (पाठरूप) के प्राथमिक अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/0 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/1 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का द्वितीय उपांश।

शब्द स्तरीय (सूक्ष्म) पाठान्तर

बिन्दु का मतलब हुआ कि चयनित पाठ में शब्द अनुपस्थित है जो कम से कम एक अन्य पाठरूप में बिलकुल वहीं स्थान में वर्तमान है।

पाठरूपों एवं संस्करणों के नाम

पाठरूप एवं संस्करण को निम्नलिखित तरीकों से नामांकित किया गया है –

रवीन्द्रभवन में मूल पाण्डुलिपि-क्रमांक के अनुसार [R+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘बँगला पाण्डुलिपि फायिलें’ (Bengali Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [B+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि फायिलें’ (English Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [E+पाण्डुलिपि संख्या] ;
और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की पाण्डुलिपि होने पर [H+पाण्डुलिपि संख्या]।

मेल प्रतिशत विधि


शब्द मेल
१-४ वर्णों के शब्दों को बिलकुल एक समान माना जायेगा अगर हर अक्षर मिलता हो। जो शब्दों में चार से अधिक वर्ण हो, उन शब्दों के विषय में, अतिरिक्त हर चार वर्णों के लिये एक वर्ण का अंतर स्वीकारा जायेगा : अर्थात् ५-८ वर्ण वाले शब्दों में अगर केवल एक वर्ण असमान हो, तब भी उन शब्दों को एक समान माना जायेगा; तथा ९-१२ वर्ण वाले शब्दों में अगर दो वर्णों तक की असमानता हो, तब भी उन शब्दों को एक समान ही माना जायेगा, इत्यादि।
टिप्पणी :
१. वर्णों में अ-कार (অ-কার) के अलावा स्वरों को भी गिना जायेगा। युक्ताक्षरों के हर व्यंजन को एवं हर स्वर को अलग वर्ण माना जायेगा। तथा, কাল के ३ वर्ण, বর্ষা के ४ वर्ण , নম্রতা के ५ वर्ण, और রবীন্দ্র্নাথ के ९ वर्ण हैं।
२. विरामादि चिह्नों को वर्णों में नहीं गिना जायेगा। तथा योजक चिह्न (hyphen) को, उत्संबोधन चिह्न (apostrophe) को, और उद्धरण चिह्न (quotation marks) को भी वर्णों में नहीं गिना जायेगा।
अंशों एवं उपांशों में मेल - प्रतिशत

पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि बहुत छोटे मेल प्रतिशत (३०-३५% से कम) को वास्तविक पाठ देखे बिना नहीं स्वीकारे। विशेषकर तब इसे नहीं स्वीकारे, जब अन्य संबंधित पाठों के साथ उस ही पाठ का ६०% (या अधिक) का मेल दिखाया जा रहा हो।

यह कहने की ज़रूरत नहीं कि अगर किसी एक अंश/उपांश का ८५% मेल (या अधिक) मात्र एक बार मिले, तब उस मेल को पाठान्तर प्रक्रिया में अवश्य स्वीकारा जायेगा। इसका यह कारण है कि ऐसा मेल प्रायः हर बार वास्तविक होता है।