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वेब्सायिट में रचनायें सम्मिलित करने के नियम
वेब्सायिट में शामिल रचनायें
इस वेब्सायिट में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की हर बंगला एवं अग्रेज़ी रचना मौजूद है। विश्वभारती की रवीन्द्ररचनावली के अनुसार इन रचनावों को चार विधावों मे बाँटा गया है। यह चार विधायें हैं : कविता एवं गीत, नाटक, छोटी कहानी एवं उपन्यास, और निबंध। निम्नलिखित सूत्रों से प्राप्त सब पाठ यहाँ शामिल किये गये हैं -
- शान्तिनिकेतन के रवीन्द्रभवन में हर परिरक्षित पाण्डुलिपि एवं हार्वर्ड विश्वविद्याल्य, ह्यूटन पुस्तकालय के रॉथिंस्टायिन संग्रह में हर अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि हमें मिली है। इन सब पाण्डुलिपियों में उपर्युक्त विधावों के हर प्रकाशित एवं अप्रकाशित लेख वेब्सायिट में सम्मिलित है। इन पाण्डुलिपियों में रवीन्द्रनाथ की हर कृति, चाहे वह रवीन्द्रनाथ के हाथ की लिखावट में क्यों न हो, यहाँ सम्मिलित है। यह मान लिया गया है कि उपर्युक्त सूत्रों से प्राप्त हर पाण्डुलिपि किसी न किसी विचार से प्रामाणिक है।
- विश्वभारती रवीन्द्ररचनावली के ३२ खंड और अचलित संग्रह के २ खंड में मौजूद हर रचना, कुछ निम्नलिखित कृतियों के अलावा, यहाँ सम्मिलित है। रचनावली के ३२वे खण्ड के कुछ कवितायें और निबंध अभी सम्मिलित नहीं किये गये हैं । यह जल्द ही सम्मिलित किये जायेंगे ।
- साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित The English Writings of Rabindranath Tagore में उपस्थित हर रचना, कुछ निम्नलिखित कृतियों के अलावा, यहाँ सम्मिलित है। लेकिन इस संकलन के विशिष्ट पाठ यहाँ शामिल नहीं हैं; पाठों को निम्नलिखित अन्य सूत्रों से लिया गया है।
- रवीन्द्रनाथ की अन्य रचनायें यहाँ सम्मिलित हैं जो उपर्युक्त संग्रहों में अनुपस्थित हो पर जिन्हें दूसरे पत्रिकावों, संकलनों एवं प्रकाशनों में प्रकाशित किया गया हो। जिन संकलनों में रवीन्द्रनाथ के अलावा दूसरे लेखको के लेख प्रकाशित हैं, उनमें से केवल रवीन्द्रनाथ के लेख यहाँ सम्मिलित हैं।
- स्फुलिंग और लेखन के विषय में, पुस्तक के रूप मे प्रकाशित पाठों को कृति सूची में सम्मिलित किया गया है, तथा उनकी प्राप्त छवियाँ भी सम्मिलित की गयी है । पत्रिकावों में प्रकाशित पाठ सम्मिलित नहीं कियें गये हैं क्योंकि यह कई सारे पत्रिका-पाठ हमें प्राप्त नहीं हुए । पाण्डुलिपि पाठें पाण्डुलिपियों की शीर्षक सूची में शामिल किये गये हैं । इनकी छवियाँ तथा प्रतिलिपियाँ सूची में संबंधित चिह्न पर क्लिक करके देखी जा सकती हैं ।
- Stray Birds, Fireflies और Thought Relics के विषय में, पुस्तक के रूप मे प्रकाशित पाठों को कृति सूची में सम्मिलित किया गया है, तथा उनकी प्राप्त छवियाँ भी सम्मिलित की गयी है । पत्रिकावों में प्रकाशित पाठ भी कृति सूची में सम्मिलित कियें गये पर इनकी छवियाँ शामिल नहीं किये गये हैं । पाण्डुलिपि पाठें पाण्डुलिपियों की शीर्षक सूची में शामिल किये गये हैं । इनकी छवियाँ तथा प्रतिलिपियाँ सूची में संबंधित चिह्न पर क्लिक करके देखी जा सकती हैं ।
इस वेब्सायिट में रवीन्द्रनाथ के निम्नलिखित लेख नहीं मिलेंगे
- चिट्ठियाँ सिवाय वे चिट्ठियाँ जो रवीन्द्रनाथ के जीवनकाल में साहित्यिक या समान रूप में प्रकाशित हुवी, जैसे कि छिन्नपत्र/ छिन्नपत्रावली, भानुसिंहेरपत्रावली, Letters to a Friend, और उनके पत्रों के रूप में लिखे गये निबंध, भ्रमणवृत्तान्त इत्यादि।
- भाषणें। मगर वे भाषणें मौजूद है जो निबंध के समान हैं अथवा जो बाद में निबंध के रूप में प्रकाशित हुवे। पर कौन-सा भाषण निबंधानुरूप है, यह सिद्ध करना कै बार कठिन हो सकता है। इसलिये जिन भाषणों को लेकर संदेह है, उन भाषणों को हमने साहस करके वेब्सायिट में शामिल किया है।
- पाठ्यपुस्तकें। केवल सहजपाठ , जिसका विशेष महत्त्व है, यहाँ उपस्थित है।
- पुस्तक समीक्षायें। मगर वे पुस्तक समीक्षायें मौजूद है जो निबंध के समान हैं अथवा जो बाद में निबंध के रूप में प्रकाशित हुवे।
- अनुवादें। रवीन्द्रनाथ द्वारा अनुवादित अन्य लेखकों के लेख यहाँ सम्मिलित नहीं हैं।
- अन्य अनुवादकों द्वारा रवीन्द्रनाथ के अनुवादित लेख भी यहाँ सम्मिलित नहीं हैं। इन में रवीन्द्रनाथ के नाम से प्रकाशित अनुवादित कृतियाँ भी गिने जायेंगी जो वास्तव में दूसरों द्वारा अनुवादित की गयी थी - जैसे कि The Post Office या The King of the Dark Chamber । केवल Crisis in Civilisation, जिसका विशेष महत्त्व है, यहाँ प्रस्तुत है।
- पाण्डुलिपियों में लिखीं टिप्पणियाँ, चिट्ठियाँ, हिसाबें, दूसरे के लेखों की प्रतिलिपियाँ, और अन्य विविध लेख यहाँ मौजूद नहीं है। लेकिन किसी भी पाण्डुलिपि में मौजूद ऐसे लेख, उस समूचे पाण्डुलिपि के छवियों के साथ यहाँ छवियों के रूप में मौजूद हैं।
- जो बँगला पाठ सिर्फ पाण्डुलिपियों एवं/अथवा पत्रिकावों में पाया गया है, उसे कृतिसूची में सम्मिलित नहीं किया गया है, तथा उसकी छवियाँ/प्रतिलिपियाँ भी उपलब्ध नहीं हैं एवं उसका पाठान्तर भी नहीं किया गया है । यह यथासंभव जल्द ही शामिल किये जायेंगे । कृति-सूची दिग्दर्शन में ऐसे पाठों की एक सूची दी गयी है ।
- जो अंग्रेज़ी पाठ सिर्फ सिर्फ पाण्डुलिपियों एवं/अथवा पत्रिकावों में पाया गया है, उसे कृतिसूची में सम्मिलित किया गया है, तथा उसकी छवियाँ/प्रतिलिपियाँ भी उपलब्ध हैं एवं उसका पाठान्तर भी किया गया है ।
- जो अंग्रेज़ी पाठ केवल पाण्डुलिपियों में ही पाया गया है, उसको कृतिसूची के शीर्षक सूची में सम्मिलित किया गया है । ऐसे पाठों की छवियाँ/तथा प्रतिलिपियाँ इस सूची से प्राप्य हैं ।
- इसके अतिरिक्त, विस्तृत सूची में सारे अंग्रेज़ी रचनावों का पूरा ब्यौरा उपलब्ध है ।
पाठरूप एवं संस्करण
प्रत्येक रचना के निम्नलिखित पाठरूपों और संस्करणों को, प्राप्त होने पर, वेब्सायिट में सम्मिलित किया गया है । इनको खोज निकालने का एवं इनकी छवियाँ लेने का हमने पूरा प्रयास किया। रवीन्द्रभवन संग्रह में सब पाण्डुलिपियों की और अधिकांश मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की डिजिटल छवियाँ उपलब्ध कराने के लिये, रवीन्द्र भवन, शान्तिनिकेतन के प्रति, राजा राममोहन राय फाउण्डेशन के प्रति, और सी-डैक, कोलकाता के प्रति हम अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। रॉथिंस्टायिन संग्रह में रवीन्द्रनाथ की हर पाण्डुलिपि की डिजिटल छवियाँ उपलब्ध कराने के लिये हम हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ह्यूटन पुस्तकालय के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी, हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं – इसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं।
मुद्रित पुस्तकों के विषय में हमने हर संस्करण की प्राथमिक छपाई का ही उपयोग किया है। प्राथमिक छपाई न मिलने पर, हमने अतिरिक्त छपाई का उपयोग नहीं किया है।
इन प्रतिबंधों का मान करते हुवे, पूर्वोक्त रचनावों के निम्नलिखित पाठरूपों एवं संस्करणों को हमने सम्मिलित किया है -
- पाण्डुलिपियों में रचनावों के हर मौजूद पाठरूप
- पत्रिकावों मे रचनावों के पाठरूप (अधिकतर प्राथमिक मुद्रित पाठरूप)
- पुस्तकों के रूप में या पुस्तक-संकलनों में रचनावों के प्राथमिक मुद्रित पाठरूप
- ब्रह्माचार्य आश्रम, शान्तिनिकेतन प्रेस, या विश्वभारती द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण
- विश्वभारती की रवीन्द्र-रचनावली के प्रमुख ३२ खण्डों, अचलित संग्रह के २ खण्डों और १३८० के गीतवितान में प्रस्तुत पाठरूप
- काव्यग्रन्थावली(बंसन् १३०३), काव्य-ग्रन्थ (बं सन् १३१०), रवीन्द्रग्रन्थावली (बं सन् १३११), काव्यग्रन्थ (बं सन् १३२१) और कुछ अन्य आदि-संकलनों में प्रकाशित पाठरूप
- अन्य महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में प्रकाशित पाठरूप
- रवीन्द्रनाथ के जीवनकाल में उनकी अप्रकाशित रचनावों के विषय में, उनके देहान्त के बाद प्राथमिक मुद्रित पाठरूप
- चयनिका एवं संचयिता में शामिल प्रथम पाठरूप : यानी इन दोनों संकलनों के द्वितीय या बाद के संस्करणों में केवल वहीं कवितायें यहाँ सम्मिलित हैं जिनका पहला प्रकाशन उस संस्करण में हुवा।
- स्वरलिपि-बंधित गीतों के विषय में केवल गीत के शब्द – मगर संगीत के पुनरावृत्त स्थायी शब्दों को छोड़ दिया गया है। इस पर फैसला करना कै बार कठिन साबित हुवा।
खोज व्यवस्था
हमारी खोज व्यवस्था में पाठों के केवल निम्नलिखित पाठरूप शामिल हैं:
बँगला- विश्वभारती की रवीन्द्र-रचनावली के प्रमुख ३२ खण्डों, अचलित संग्रह के २ खण्डों और १३८० के गीतवितान में प्रस्तुत पाठरूप
अंग्रेज़ी
- साहित्य आकादेमी द्वारा प्रकाशित The English Writings of Rabindranath Tagore में उपस्थित रचनावों के विषय में, रचनावों के मूलपाठ जिनका इस संकलन में उपयोग हुवा (यानी इस संकलन में रचनावों के प्रस्तुत पाठरूप नहीं )
- इस संकलन में अनुपुस्थित रचनावों के विषय में, इन रचनावों के प्रथम प्राप्य मुद्रित पाठरूप
पाठान्तर व्यवस्था
प्रत्येक रचना के प्रत्येक मुद्रित पाठरूप, और पाण्डुलिपियों में कार्यविधि-उपयुक्त प्रत्येक हस्तलिखित पाठरूप, हमारी पाठान्तर व्यवस्था में कार्यान्वित हैं । पाठान्तर व्यवस्था में सम्मिलित नहीं किये गये हैं:- विपर्यस्त पाण्डुलिपि-पाठरूप, जिनका कोई ठीक क्रमबंधन करना असंभव साबित हुवा
- पाण्डुलिपि एवं टाइपप्रति पाठरूप जिनमें और किसी अन्य सम्मिलित पाठरूप में कोई अंतर नहीं हैं (या बहुत कम अंतर हैं)। इस विषय में, पाठरूपों के कुछ खास अंतरों का विवरण विस्तृत कृति-सूची में किया गया है।
- लम्बी रचनावों के विच्छिन्न पाठांशें
- कुछ छोटी-छोटी कवितायें जिनके बहुत सारे पाठरूप हो, जैसे कि स्फुलिङ्ग , लेखन, स्ट्रेबर्ड्ज़ या फ़ायरफ़्लायिज़ । हमारी पाठान्तर व्यवस्था के माध्यम से इन पाठों को मिलाने पर जो सूक्ष्म प्रतिफल सामने आते, इनको समझना काफ़ी कठिन होता। इन पाठों को आँखों से पढ़कर मिलाना ही ज्यादा आसान है।
यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि उपर्युक्त इन पाठरूपों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ वेब्सायिट में मौजूद हैं।
कुंजीपटल प्रयोग
बँगला लिपि के अक्षरों एवं युक्ताक्षरों के लिये अभ्र कुंजीपटल प्रणाली (Avro keyboard) का उपयोग किया गया है। पाठकों को यह सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने का हम परामर्श देते हैं। तथा इसी लिप्यंतरण पद्धति के अनुसार बँगला अक्षरों के लिये साधारण अंग्रेज़ी अक्षरों (यानी रोमन लिपि के अक्षर) का भी उपयोग किया जा सकता है। पद्धति के नियमों का विवरण वेब्सायिट के संबंधित पन्ने पर दिया गया है।
कंप्यूटर अनुकूलता
यद्यपि इस वेब्सायिट को देखने-पढ़ने के लिये किसी खास संगणनक (कम्प्यूटर) की ज़रूरत नहीं है, तथापि पाठकों को इन सलाहों से फायदा हो सकता है –
- चूँकि वेब्सायिट में इतने सारे जटिल तथ्यों को पेश किया गया है, इसलिये मोबाइल फोन या टैब्लिट के बजाय, डेस्कटॉप या लैपटॉप का ही प्रयोग करें।
- ठीक इसी कारण किसी तेज-इंटरनेट कनेक्शन का उपयोग किया जायें।
- निम्नलिखित कुछ सॉफ़्टवेयरों की आवश्यकता है
- Windows XP (SP2), Windows Vista, Windows 2007 या उपरांत ऑपरेटिंग सिस्टम
- Mac OS X 10.4 या उपरांत ऑपरेटिंग सिस्टम
- किसी भी साधारण ब्राउज़र से काम चलेगा (जैसे कि Google Chrome, Mozilla Firefox, Opera या Internet Explorer)। कभी कभी Mozilla Firefox में बँगला लिपि ठीक से नहीं दिखायी देती। खैर, वेब्सायिट को किसी भी जावास्क्रिप्ट प्रयुक्त (Javascript enabled ) ब्राउज़र द्वारा देखा जा सकता है।
किसी भी बँगला कुंजीपटल व्य्वस्था की आवश्यकता नहीं है। वेब्सायिट में उपस्थित रोमन-बँगला लिप्यंतरण व्यवस्था अभ्र कुंजीपटल (Avro Keyboard) की पद्धति के अनुसार काम करती है। इसलिये पाठकों से निवेदन है कि वे इस लिप्यंतरण पद्धति से सुपरिचित हो।
प्रतिलिपि प्रणाली
पाण्डुलिपि एवं मुद्रित पाठों के सामान्य नियम
हर पाण्डुलिपि और मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका की छवियों के अलावा हर पाठ की प्रतिलिपि .txt UTF-8 फायिल के रूप में पाठकों के लिये प्रस्तुत है। इनको देखने के लिये वेब्सायिट के 'कृति सूची / संपूर्ण तालिका' अनुभाग की तालिका में अथवा 'पाठान्तर' अनुभाग की तालिका में चिह्न पर क्लिक करें।
प्रतिलिपियाँ छवियों के पास दाहिने तरफ़ प्रकट होंगी। तालिका में अगर किसी भी पाठ के पासवाली कोष्ठिकावों में चिह्न या चिह्न न हों, तो वह पाठ हमें प्राप्त नहीं है।
प्रतिलिपि पद्धति : मानकीकरण
पाठकों की सुविधा के लिये एवं पाठान्तर सॉफ्टवेयर व्यवस्था के लिये हर प्रतिलिपि की तैयारी में कुछ सामान्य नियमों का प्रयोग किया गया है। इसके कारण यदा कदा कुछ मूल पाण्डुलिपि एवं पुस्तक के पाठ-विन्यास में परिवर्तन करना पड़ा। पर मूल पाठ-विन्यास छवियों में देखा जा सकता है।
- मुद्रित पुस्तक के प्रारंभ एवं अंत में दिये गये संदेश एवं जानकारी – जैसे कि आख्या पृष्ठ पर, मुख पृष्ठ पर, समर्पण पृष्ठ पर, विषय सूची में इत्यादि - की प्रतिलिपियाँ अक्सर नहीं बनायी गयी वरना पाठान्तर सॉफ्टवेयर द्वारा प्राप्त प्रतिफल भ्रामक साबित हो सकते थे। पुस्तक के अंत में दी गयी पुष्पिका की भी प्रतिलिपि नहीं बनायी गयी है। यह सब चीज़ें पुस्तक की छवियों मे देखी जा सकती हैं।
- पंक्तियों, पद्यों एवं संलापों के बीच में अंतराल :
- कविता के दो पद्यों के बीच में एक लायिन का अंतराल रखा गया है, लेकिन गद्य के दो अनुच्छेदों के बीच कोई लायिन-अंतराल नहीं है। जहाँ पद्यों का विभाजन स्पष्ट नहीं है, वहाँ हमने विभाजन अपनी समझ के मुताबिक किया हैं।
- जिन नाटकों में गद्य और पद्य दोनों उपस्थित हैं, वहाँ संलापों के बीच में एक लायिन-अंतराल रखा गया है, लेकिन केवल गद्य-नाटकों में ऐसा नहीं किया गया है। इसका कारण है कि पाठान्तर सॉफ्टवेयर में गद्य और पद्य के लिये अलग अलग पदच्छेद एवं पदव्याख्या (parsing) के नियम स्थित एवं प्रयुक्त हैं।
- शीर्षकों, नाट्यनिर्देशों आदि के अंतरालों के विषय में, कभी कभी मूल विन्यास और प्रतिलिपि विन्यास में कुछ भेद हैं। मूल विन्यास छवियों से समझा जा सकता है।
- किसी पंक्ति के आरंभ तथा मध्य में अंतराल :
- गद्य में हर अनुच्छेद बाँयें हाशिये या किनारे से शुरु किया गया है
- पद्य की हर पंक्ति बाँयें हाशिये से शुरु की गयी है (चाहे मूलरूप में हाशिये से थोड़ी जगह क्यों न छुड़ी हुवी हो )
- किसी पद्य की पंक्ति के बीच अगर अवकाश हो, तब हैश चिह्न (#) का प्रयोग किया गया है। जहाँ पंक्ति-मध्य अवकाश स्पष्ट नहीं है, वहाँ हम अपनी समझ के अनुसार अवकाश कभी कभी अंकित किये हैं।
- नाट्य निर्देश, वक्तावों के नाम आदि
- नाटक का अंक एवं दृश्यांक, दृश्य के प्रारंभ में स्थान एवं काल का उल्लेख, उपस्थित पात्रों-चरित्रों के नाम, नाट्य निर्देश, संलाप में वक्तावों के नाम इत्यादि, इनको प्रतिलिपि में एक-समान तरीके से लिखा गया है।
- वक्ता के नाम और उसकी वक्तृता को एक ही लायिन में लिखा गया है।
- रचना स्थान, रचना काल एवं रचना तिथि (जो आम तौर पर रचना के अंत में मिलते हैं ) हर बार एक समान रूप से विन्यस्त किये गये हैं।
- जहाँ डिजिटल छवि में पाठ साफ़ साफ़ पढ़ा नहीं जा सका ( आम तौर पर क्षतिग्रस्त पन्नों के कारण ) वहाँ संदेह संकेत करने के लिये पाठ को « » चिह्नों के बीच रखा गया है।
- छापे की अशुद्धियों को प्रतिलिपियों में वैसे के वैसे ही रखा गया है, लेकिन औंधे-उलटे अक्षरों या टाइपों का संशोधन किया गया है।
पाण्डुलिपि प्रतिलिपि प्रणाली के कुछ विशेष नियम
हर पाण्डुलिपि की छवियों के अलावा उसकी प्रतिलिपि भी .txt UTF-8 फायिल के रूप में पाठकों के लिये प्रस्तुत है। पाण्डुलिपि प्रतिलिपियों को पेश करने के दो तरीके अपनाये गये हैं –समूचे पाण्डुलिपि के पन्नों की क्रमानुसार प्रतिलिपि
इस प्रस्तुति में पाण्डुलिपि के प्रथम पन्ने से अंतिम पन्ने तक की प्रतिलिपि क्रमानुसार की गयी है (अर्थात् जिस वर्तमान क्रम में पन्नें आबद्ध हैं )। चूँकि कोई-कोई रचनावों के अंश एक ही पाण्डुलिपि में अलग अलग स्थानों में बिखरे हुवे हैं, और कभी कभी अन्य रचनावों के पाठों के बीच लिखे हुवे हैं, इसलिये इस प्रतिलिपि में किसी विशिष्ट रचना-पाठ को क्रमानुसार पढ़ना पाठकों के लिये कठिन हो सकता है। दरअसल पाण्डुलिपियों में हाथ की लिखावट पढ़नें में और लोपन एवं संयोजन इत्यादि समझनें मे पाठकों की सहायता करना ही इस प्रतिलिपि का मुख्य उद्देश्य है। इस लिये इन प्रतिलिपियों को छवियों के पास एवं छवियों के साथ प्रदर्शित किया गया है। पाण्डुलिपि में किये गये लोपनों, संयोजनों और अन्य परिवर्तनों को सूचित करने के लिये निम्नांकित चिह्नों का प्रयोग किया गया है। यह प्रतिलिपि, कुछ हद तक, संबंधित पाण्डुलिपि में उपस्थित रचना-विकास का निरूपण करती है।
पाण्डुलिपि में उपस्थित रचनावों के अंतिम पाठरूप।
हमारे अनोखे 'फिल्टर सॉफ्टवेयर' के ज़रिये, पाण्डुलिपि में लोपनों, संयोजनों और अन्य परिवर्तनों को छानकर उस पाण्डुलिपि के अनुसार हर रचना का जो अंतिम पाठरूप प्राप्त होता है, उस पाठरूप की प्रतिलिपि भी उपलब्ध है।
पाण्डुलिपि - प्रतिलिपि पद्धति
- संभव होने पर पाठ के लोपित अंश को प्रतिलिपि में शामिल किया गया है।
- लेखांकनों को (doodles) प्रतिलिपि में दिखाने का प्रयास नहीं किया गया है। इनको छवियों में देखा जा सकता है। संभव होने पर, लेखांकनों से छिपे लोपित अक्षरों, शब्दों, वाक्यांशों इत्यादि को प्रतिलिपि में रखा गया है।
- अनेक पाण्डुलिपियों में एक से अधिक पृष्ठ-क्रमांक मौजूद हैं। ऐसी अवस्था में सबसे स्पष्ट और सबसे अधिक सिलसिलेवार पृष्ठ संख्या का पालन किया गया है। पाण्डुलिपि में अगर ऐसा कोई भी स्पष्ट पृष्ठसंख्या न हो, तब हमने खुद एक नये पृष्ठ क्रमांक का प्रयोग किया है।
- पृष्ठ संख्या के पहले दुगुना तारक चिह्न (**) का प्रयोग किया गया है। पाण्डुलिपि के किसी पन्ने पर अगर नंबर न लिखा हो, तब उपयुक्त क्रमांक के अनुसार उस पन्ने को एक नंबर दिया गया है।
- पाण्डुलिपियों में लेखों के शीर्षक अक्सर नहीं मिलते हैं। शीर्षकों को तब रचनावली से, या यथोचित किसी अन्य मुद्रित संस्करण से, लिया गया है। प्रतिलिपियों में शीर्षकों के पहले इकलौते तारक चिह्न का (*) प्रयोग किया गया है।
- मूल पाण्डुलिपि में अनुपस्थित टिप्पण्यों इत्यादि को भी प्रतिलिपि में इकलौते तारक चिह्न (*) के बाद दिया गया है।
- यदि किसी रचना के एक से अधिक पाठरूप एक ही पाण्डुलिपि में मौजूद हो, तब उन पाठरूपों को तारक चिह्न एवं क्रमसंख्या से (जैसे *1, *2 इत्यादि) चिह्नांकित किया गया है।
पाण्डुलिपि में য়, র, ড়, ঢ় इत्यादि अन्य अक्षरों में बिन्दी को, गायब होने पर, ठीक जगह बिठाया गया है। इस ही तरह से लिखाई में आयें कुछ कुछ छोटे छोटे भूलों को चुपचाप संशोधित किया गया है। लिखाई के एवं मुद्रन के भूलों को प्रतिलिपि में वैसे के वैसे ही प्रस्तुत करने के नियम का यह एकमात्र उल्लंघन है।
पाण्डुलिपि प्रतिलिपियों में प्रयुक्त चिह्न
Sign | Note/Explanation |
---|---|
<पाठ> | लोपित पाठ |
{पाठ} | संयोजित पाठ |
+++ | अस्पष्ट या अपठनीय पाठ |
±पाठ± | पाठ जिसका स्थान अनिश्चित है |
৲पाठ १৲ पाठ२ पाठ२ पाठ२ ৴पाठ ३৴ | स्थानांतरित पाठ |
[\पाठ\] | रेखांकित पाठ |
⋋पाठरूप १⋋ ⋌पाठरूप २⋌ | एक साथ एक ही रचनांश के दो पाठरूप |
≮पाठ≯ | stet: पूर्वलोपित पाठ का पुनःप्रयोग |
[~हाशिये में पाठ] प्रचलित पाठ [~] | हाशिये में लिखा पाठ |
<⋏⋏> OR {⋏पाठ⋏} OR <⋎⋎> OR {⋎पाठ⋎} |
पाण्डुलिपि में जहाँ रेखा, तीरचिह्न, या तारक चिह्न का प्रयोग से किसी छोटे पाठांश (शब्द/वाक्यांश/वाक्य) का स्थानांतरण संकेत किया गया है, वहाँ:
|
⋀ OR ⋁ | यदि किसी लम्बे-बड़े पाठांश को स्थानंतरित किया गया है, तब:
|
∟ | पाण्डुलिपि में ∟ चिह्न या एक लम्बा खड़ीपाई-जैसा चिह्न पंक्ति विच्छेदन एवं अनुच्छेद विच्छेदन संकेत करता है। इनको पाण्डुलिपि में मिलने पर, प्रतिलिपि में अगले पाठांश को सीधे अगले लायिन या अगले अनुच्छेद में रखा गया है, और उस नये लायिन या अनुच्छेद की शुरुआत में ∟ चिह्न दिया गया है। |
संग्रह सर्वेक्षण – पाण्डुलिपि
वेब्सायिट के इस अनुभाग में प्रत्येक पाण्डुलिपि की छवियाँ एवं उसकी प्रतिलिपि प्रस्तुत हैं।
इस भाग में बँगला और अंग्रेज़ी रचनावों को अलग अलग नहीं किया गया है क्योंकि अक्सर एक ही पाण्डुलिपि में दोनों भाषावों के लेख मिलते हैं।
पाण्डुलिपियों में चार हिस्से हैं -
- RBVBMS: विश्वभारती के रवीन्द्रभवन में मूल पाण्डुलिपि संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
- BMSF: रवीन्द्रभवन में ‘बँगला पाण्डुलिपि फायिलें’ (Bengali Manuscript Files) संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
- EMSF: रवीन्द्रभवन में ‘अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि फायिलें’ (English Manuscript Files) संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
- HRVD: हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ह्यूटन पुस्तकालय में रॉथिंस्टायिन संग्रह की पाण्डुलिपियाँ
इन पुस्तकालयों द्वारा दी गयी पाण्डुलिपि-संख्या को हमने बनाये रखा है।
पाण्डुलिपियों की छवियों एवं प्रतिलिपियों को देखने के दो तरीके हैं :पाण्डुलिपि सूची
- पाण्डुलिपि सूची पर क्लिक करें। एक तालिका प्रकट होगी जिसके प्रथम (बाँयें) खाने में पूरी पाण्डुलिपि सूची उपस्थित होगी। कौन सी पाण्डुलिपि में किन किन रचनायें उपस्थित है, यह जानकारी अन्य स्तंभों से पाठक को प्राप्त होगी।
- इच्छित पाण्डुलिपि-संख्या पर क्लिक करें। एक पत्ता सामने खुलेगी जिस में उद्दिष्ट पाण्डुलिपि की छवि एवं प्रतिलिपि पास-पास दिखेंगी। छवियों का परिचालन करने के दो उपाय हैं –
- कुंजीपटल द्वारा
- औज़ार पिटारा (टूलबार) द्वारा – पिटारा खोलने के लिये दाईं तरफ में दिया गया टूलबार चिह्न पर क्लिक करें।
-
कुंजीपटल द्वारा छवियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं –
कुंजीपटल परिचालन Home प्रथम पृष्ठ दिखायें End अंतिम पृष्ठ दिखायें Backspace पिछला पृष्ठ दिखायें Enter अगला पृष्ठ दिखायें ↑ (ऊर्ध्वमुखी तीर) पृष्ठ में उपर की तरफ़ जायें ↓ (अधोमुखी तीर) पृष्ठ में नीचे की तरफ़ जायें ← (वाममुखी तीर) पृष्ठ में बाईं ओर जायें → (दक्षिणमुखी तीर) पृष्ठ में दाईं तरफ़ जायें + पृष्ठ को बड़ा करें (zoom in) - पृष्ठ को छोटा करें (zoom out) - कुंजीपटल द्वारा प्रतिलिपियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं
- प्रतिलिपि में प्रयुक्त चिह्नों की व्याख्या के लिये 'Help' बटन पर क्लिक करें।
कुंजीपटल | परिचालन |
---|---|
Pg Up | पृष्ठ के उपरी भाग में जायें |
Pg Dn | पृष्ठ के निचले भाग में जाये |
Ctl+ | लिपि के आकार को बड़ा करें |
Ctl- | लिपि के आकार को chota करें |
स्पेस बार | प्रतिलिपि दिखायें / प्रतिलिपि छिपायें |
शीर्षक सूची
इस सूची से पाण्डुलिपियों में अभिज्ञात रचनावों के ठिकानों की जानकारी प्राप्त होती है।
- इच्छित रचना को चुनने के लिये, वर्णक्रमानुसारी मेन्यू पर क्लिक करके मेन्यू में अपेक्षित रचना को क्लिक करें, अथवा इलेक्ट्रॉनिक खोज डिब्बे में रचना-शीर्षक टाइप करें।
- जब अपेक्षित रचना को चुन लिया गया हो, तब इच्छित पाण्डुलिपि संख्या पर क्लिक करने पर उस पाण्डुलिपि में चयनित रचना की छवि एवं प्रतिलिपि प्रस्तुत की जायेंगी। छवि एवं प्रतिलिपि का परिचालन के लिये उपर्युक्त उपाय देखें।
पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ
‘पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ ’ पर क्लिक करने के बाद पाण्डुलिपि सूची से इच्छित पाण्डुलिपियों की छवियाँ एवं प्रतिलिपियाँ देखी जा सकती हैं।
संग्रह सर्वेक्षण – मुद्रित पुस्तक एवं पत्रिका
वेब्सायिट के इस अनुभाग में सभी प्राप्त मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियाँ उपस्थित हैं।- यहाँ रचनावों को भाषानुसार दो भागों मे बाँटा गया है – बँगला एवं अंग्रेज़ी
- प्रत्येक भाग में छवियों को निम्नलिखित अनुभागों में विभक्त किया गया है –
- रचनावली। विश्वभारती द्वारा प्रकाशित रवीन्द्ररचनावली के प्रमुख ३२ खण्डों की और अचलित संग्रह के २ खण्डों की छवियाँ। अंग्रेज़ी लेखों में ऐसा कोई अनुभाग नहीं है।
- संकलन। जो रचनायें पहले किसी अन्य ग्रन्थ में प्रकाशित हुवी थीं, उनका संकलन। अंग्रेज़ी लेखों में ऐसा कोई अनुभाग नहीं है।
- कविता एवं गीत
- नाटक
- छोटी कहानी एवं उपन्यास
- निबंध
- वेब्सायिट के ठीक पन्ने खुलने पर, इच्छित रचना को चुनने के लिये, वर्णक्रमानुसारी मेन्यू पर क्लिक करके मेन्यू में अपेक्षित रचना को क्लिक करें, अथवा इलेक्ट्रॉनिक खोज डिब्बे में रचना-शीर्षक टाइप करें।
- जब अपेक्षित रचना मिल जायें, तब उसपर क्लिक करने से उस संस्करण की छवियाँ देखी जा सकती हैं। छवियों का परिचालन करने के दो उपाय हैं –
- कुंजीपटल द्वारा
- औज़ार पिटारा (टूलबार) द्वारा – पिटारा खोलने के लिये दाईं तरफ में दिया गया टूलबार चिह्न पर क्लिक करें।
- पूरे पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित पाठों को दिखाना इस पन्ने का उद्देश्य है। विशिष्ट रचनावों को वेब्सायिट के ‘कृतिसूची’ भाग से देखना सबसे आसान है। तो भी पत्रिकावों में प्रकाशित किसी भी विशिष्ट कहानी को ‘গল্প’ पर क्लिक करके पाया जा सकता है। खैर, विशिष्ट पाठों को वेब्सायिट के ‘कृति सूची’ विभाग से आसानी से पाया जा सकता है। वेब्सायिट के इस विभाग में कुछ अधिक सूचनायें भी दी गयी है।
- कुंजीपटल द्वारा छवियों का परिचालन करने के लिये निम्नांकित कुछ सरल उपाय हैं –
कुंजीपटल परिचालन Home प्रथम पृष्ठ दिखायें End अंतिम पृष्ठ दिखायें Backspace पिछला पृष्ठ दिखायें Enter अगला पृष्ठ दिखायें ↑ (ऊर्ध्वमुखी तीर) पृष्ठ में उपर की तरफ़ जायें ↓ (अधोमुखी तीर) पृष्ठ में नीचे की तरफ़ जायें ← (वाममुखी तीर) पृष्ठ में बाईं ओर जायें → (दक्षिणमुखी तीर) पृष्ठ में दाईं तरफ़ जायें + पृष्ठ को बड़ा करें (zoom in) - पृष्ठ को छोटा करें (zoom out)
कृति सूची
विकल्प मेन्यू से पहले भाषा (बँगला या अंग्रेज़ी) चुनें, और फिर इच्छित रचना-विधा। प्रत्येक रचना-विधा (कविता एवं गीत, नाटक इत्यादि) के लिये, कृति सूची को दो तरीकों से पेश किया गया है।
(क) वर्णक्रमानुसारी सूची
- यहाँ पहले पन्ने में खोज करने के दो उपाय है –
- रचनावों के शीर्षकों के प्राथमिक अक्षरों की सूची प्रस्तुत है। इच्छित रचना के नाम के प्राथमिक अक्षर के अनुसार, यथोचित अक्षर पर क्लिक करें, फिर अपने अपेक्षित रचना के नाम पर। एक छोटा पन्ना खुलेगा जिसमें उद्दिष्ट रचना की कृतिसूची-संबिधित पूरी सूचना दी जायेगी।
- ‘खोज’ डिब्बे में इच्छित रचना का नाम टाइप करें। जो खोज-परिणाम सूची प्राप्त होगी, उसमें अपेक्षित रचना-शीर्षक पर क्लिक करें। एक छोटा पन्ना खुलेगा जिस पर उद्दिष्ट रचना की कृतिसूची-संबिधित पूरी सूचना दी जायेगी।
- उपर्युक्त खुले छोटे पन्ने में उद्दिष्ट रचना के किसी भी पाठ-रूप के नाम पर क्लिक करें। चयनित पाठरूप की छवियाँ प्रस्तुत की जायेंगी (एवं पाण्डुलिपियों के लिये संबंधित प्रतिलिपि भी)।
- कविता एवं गीत की सूची को साधारणतः शीर्षकों के अनुसार क्रमबद्ध किया जायेगा। बाईं तरफ दिये गये बटनों से यह क्रम बदलाया जा सकता है – प्रारंभिक पंक्ति के अनुसार भी सूची को क्रमबद्ध किया जा सकता है और रचनावली-क्रम के अनुसार भी।
निबंध की सूची भी साधारणतः शीर्षकों के अनुसार क्रमबद्ध किया जायेगा। बाईं तरफ दिये गये बटनों से यह क्रम बदलाया जा सकता है – निबंध की कृति सूची को रचनावली-क्रम के अनुसार भी क्रमबद्ध किया जा सकता है।
रंगाकन – उपर्युक्त खुले छोटे पन्ने में, जिस पाठरूप-नाम का रंग काला है, वह पाठरूप वेब्सायिट में सम्मिलित है। जो पाठरूप-नाम का रंग लाल है, वह पाठरूप वेब्सायिट में मौजूद नहीं है – यानी उस पाठरूप की छवियाँ, प्रतिलिपि एवं पाठ-भेद वेब्सायिट में नहीं मिलेंगे।
हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं।
(ख) संपूर्ण तालिका
इस तालिका में प्रत्येक रचना का विवरण दिया गया है। तालिका के अलग अलग डिब्बों में, निम्नांकित चिह्नों का प्रयोग हुआ है –- प्रत्येक लड़ी के सबसे बाँयें वाले डिब्बे में, शीर्षक के पास चिह्न उपस्थित है। पाठान्तर सॉफ़्टवेयर का पन्ना खोलने के लिये, इस चिह्न पर क्लिक करें।
- पाण्डुलिपियों के लिये
- पाण्डुलिपि संख्या के उपर, चिह्न पर क्लिक करने से, उस पाण्डुलिपि में उस रचना को छानकर प्राप्त अंतिम (या ‘फिल्टर्ड’) पाठरूप की प्रतिलिपि प्रस्तुत होगी (यानी सब परिवर्तनों, लोपनों, संयोजनों इत्यादि को प्रस्तुत पाठरूप में साफ़ कर दिया जायेगा)।
- पाण्डुलिपि संख्या के नीचे, चिह्न पर क्लिक करने से उस पाण्डुलिपि की छवियाँ एवं अछनित प्रतिलिपि प्रस्तुत होगी (यानी वह प्रतिलिपि जिसमें संबंधित पाण्डुलिपि के परिवर्तनों, लोपनों, संयोजनों इत्यादि को देखा जा सकता है)।
- मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों के लिये
- संबंधित छवियों देखने के लिये चिह्न पर क्लिक करें
- संबंधित प्रतिलिपि देखने के लिये चिह्न पर क्लिक करें
- अगर किसी भी कृति के बारे में हमारे पास अतिरिक्त जानकारी हो (जैसे कि संबंधित किसी पाण्डुलिपि का कुछ विशेष विवरण, या संबंधित किसी पत्रिका का सामयिक भाग की जानकारी इत्यादि), तो वह जानकारी प्राप्त करने के लिये चिह्न पर क्लिक करें।
- किसी बँगला काव्य ग्रन्थ (जैसे कड़ि ओ कोमल, मानसी, या सोनार तरी ) के सारे कवितावों को देखने के लिये ' कृति सूची : वर्णक्र्मानुसारी सूची ' में जायें और बाईं तरफ़ छाँटने के डिब्बे में 'ग्रन्थ' चुनकर, अपेक्षित ग्रन्थ के नाम पर क्लिक करें । एक नयी तालिका खुलेगी जिससे चयनित ग्रन्थ की अलग अलग कवितावों को देखने के लिये संबिंधित चिह्न पर क्लिक करें ।
- किसी अंग्रेज़ी काव्य ग्रन्थ (जैसे Gitanjali, The Crescent Moon, Crossing, Fruit-Gathering या Lover’s Gift) के सारे कवितावों को देखने के लिये 'कृति सूची : संपूर्ण तालिका' खोलें । इस तालिका में अपेक्षित ग्रन्थ के नाम पर क्लिक करें । ग्रन्थ की सारी कवितावों की एक सूची एक नयी खिड़की में खुलेगी । फिर किसी भी कविता को ' कृति सूची : वर्णक्रमानुसारी सूची ' से आसानी से पाया जा सकता है ।
जिस पाठरूप के नाम के पास उपर्युल्लेखित कोई भी चिह्न न हो, वह पाठरूप की छवियाँ हमें प्राप्त नहीं हो पायी, तथा उसकी प्रतिलिपि एवं पाठान्तर भी वेब्सायिट में अनुपलब्ध हैं।
(ग) अन्य सूचियाँ
संपूर्ण बंगला सूची में प्रत्येक विधा का एक तीसरा भाग भी है - अन्य सूचियाँ । रचनावों के पर्यायी शीर्षकों की खोज इन अन्य सूचियों द्वारा की जा सकती है । बंगला ‘छोटी कहानी एवं उपन्यास’ वाले भाग में अन्य सूचियों की तहत ‘सूची’ के उपभाग में छोटी कहानियों के संकलन की सूची भी प्राप्य है ।
इन अन्य सूचियों में किसी रचना की खोज करने, पहले CTL+F (P.C.) या CMD+F (Mac) दबायें । एक छोटा डिब्बा खुलेगा जिसमें रचना का नाम टाइप किया जा सकता है । अगर उस रचना का नाम पाया जायें तो वह रंगांकित होकर आसानी से पाठक को दिखेगा ।
(घ) कालक्रमानुसारी सूची
संपूर्ण बंगला सूची के इस भाग में प्रकशित पत्रिकावों एवं प्रकशित पुस्तकों की प्रकाशन तिथि के आधार पर एक समयानुसारी सूची प्राप्य है । इस सूची को काम में लाने के लिये दो तरीके है ।
- उपर के डिब्बे में किसी भी वर्ष पर क्लिक करने से उस साल के बारहमास दिखेंगे । उस साल के जिन महीनों में लेख प्रकाशन हुए थे, केवल उन्हीं महीनों पर क्लिक किया जा सकता है । एक ऐसे महीने पर क्लिक करने से एक खिड़की खुलती है जहाँ उस महीने में प्रकाशित रचनावों की सूची देखी जा सकती है । इसके पहले वाले जिस महीने में लेख प्रकाशित हुए थे, उस महीने की सूची पाने के लिये, इस खुली खिड़की के उपरि भाग में बाँये तरफ़ के डिब्बे पर क्लिक किया जायें । इस महीने के बाद जिस अगले महीने में लेख प्रकाशित हुए थे, उस महीने की सूची पाने के लिये खिड़की के उपरि भाग में दाईं तरफ़ के डिब्बे पर क्लिक किया जायें ।
- पन्ने के उपरि भाग में “खोज” पर क्लिक करने से एक औज़ार पिटारा प्रकट होता है । पिटारे में पहले रचना-विधा और फिर रचना-नाम चयन करके उस रचना का प्रकाशन का ब्योरा देखा जा सकता है ।
हमे खेद है कि रवीन्द्रभवन से मुद्रित पुस्तकों एवं पत्रिकावों की छवियों की आखिरी किस्त हमें नहीं प्राप्त हुवी। अन्य सहयोगी संस्थावों के सदय सहयोग से यह कमियाँ कुछ कुछ भरी गयी। तब भी हमारी पूरी चेष्टा के बावजूद, कुछ कमियाँ रह गयी हैं।
सूचना: – इछित रचना का प्रकाशन-इतिहास तथा पाठरूपों की छवियों एवं प्रतिलिपियों को तेज़ी से पाने के लिये ‘वर्णक्रमानुसारी सूची’ देखें। रचना संबिधित पूरी उपलबध जानकारी पाने के लिये ‘संपूर्ण तालिका’ देखें।
खोज
सम्मिलित पाठरूप
हमारी खोज व्यवस्था में केवल निम्नलिखित पाठरूप उपलब्ध है –बँगला
- विश्वभारती की रवीन्द-रचनावली के प्रमुख ३२ खण्डों, अचलित संग्रह के २ खण्डों और १३८० के गीतवितान में प्रस्तुत पाठरूप
अंग्रेज़ी
- साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित द इंग्लिश रायिटिंग्ज़ ऑफ रवीन्द्रनाथ ठाकुर (The English Writings of Rabindranath Tagore) में उपस्थित रचनावों के विषय में, रचनावों के मूलपाठ जिनका इस संकलन में उपयोग हुवा (और इस संकलन में रचनावों के प्रस्तुत पाठरूप नहीं )
- इस संकलन में अनुपुस्थित रचनावों के विषय में, इन रचनावों के प्रथम प्राप्य मुद्रित पाठरूप
कार्य प्रणाली
- जिस विधा में आप किसी शब्द या वाक्यांश की तलाश करना चाहते हैं (जैसे कि नाटक में, कविता एवं गीत में, सब लेख में इत्यादि), उस विधा को नीचे विकल्प मेन्यू से चुनें।
- जिस शब्द या वाक्यांश की खोज करना चाहते हैं उसको आप नीचे डिब्बे में टाइप करें। आप बाँगला लिपि में भी और लिपयंतरण पद्धति के अनुसार रोमन लिपि में भी टाइप कर सकते हैं। रोमन लिपि में टाइप करने के बाद आप स्पेस बार या एन्टर दबाये – रोमन अक्षर बँगला अक्षर में परिवर्तित हो जायेंगे।
यदि आप अंग्रेज़ी में खोज करना चाहते है और रोमन लिपि बनाये रखना चाहते हैं, तो डिब्बे में सर्वप्रथम आप Ctrl+M दबायें और फिर टाइप करें (इससे वेब्सायिट में स्वचलित लिप्यंतरण सुविधा को बंद किया जाता है)। - प्रतिफल पन्नें में खोज के परिणामों को दस-दस करके दिखाया जायेगा।
- खोज-परिणामी प्रत्येक रचना/पाठ के शीर्षक में एक कड़ी बिठायी गयी है। कड़ी पर क्लिक करने से, आप उस पाठ की प्रतिलिपि देख पायेंगे।
- प्रतिलिपि पन्ने में CTRL+F (पी.सी में) या CMD+F (मैक में) दबाकर, खुले छोटे डिब्बे में (जो एक कोने में खुलता है) अपेक्षित शब्द या वाक्यांश पुनः टाइप करें। बँगला शब्दों के लिये बँगला लिपि में टाइप करें या पिछले पन्ने के खोज डिब्बे से 'कॉपी-पेस्ट' करें । बँगला शब्दों के लिये यहाँ रोमन अक्षरों में टाइप न करें । अंग्रेज़ी शब्दों के लिये (या रोमन लिपि में टाइप करने के लिये) Ctrl+M दबायें और फिर टाइप करें। फलतः प्रस्तुत पाठ में आपके इच्छित शब्द एवं वाक्यांश रंगाकित होकर आसानी से दिखेंगे।
पाठान्तर
त्रिस्तरीय पाठान्तर
हमारा प्रभेद सॉफ़्टवेयर किसी भी रचना के अलग अलग पाठरूपों/संस्करणों को तीन-तीन स्तरों में मिलाता है – अंशों (sections) एवं उपांशों (segments) का स्थूल पाठान्तर (‘gross’ or macro-collation) किया जाता है, और शब्दों का सूक्ष्म पाठांतर (‘fine’ or micro-collation) किया जाता है।- अंश – उपन्यासों एवं लम्बे गद्यों के अध्याय, नाटकों के अंक एवं दृश्य, और लम्बी कवितावों के सर्ग, यह रचनावों के अंश माने गये हैं। अंश-स्तर में प्रेभेद अलग अलग पाठरूपों/संस्करणों को मिलाकर उनकी समानता एवं भिन्नता दिखाता है। छोटी-कवितावों, छोटे गीतों एवं छोटे निबंधों का एक ही अंश है – ऐसा माना गया है।
टिप्पणी – जिस तरीके से किसी लम्बी रचना का विभाजन किया जाता है, उसके कारण कभी कभी अध्याय, दृश्य इत्यादि के जिन अनुभागों को बीच एक लायिन अंतराल रखा गया है (जैसे कि किसी गद्यरचना में उपस्थित कविता के पद्यों के बीच), उन अनुभागों को प्रभेद के चलन में अलग अलग भागों या अंशों जैसे दिखाया जा सकता है।
- उपांश – गद्यों के अनुच्छेद, नाटक-संलापों की अलग अलग उक्तियाँ, कवितावों के पद्य, यह रचनावों के उपांश माने गये हैं। उपांश स्तर में प्रेभेद अलग पाठरूपों के बराबर उपांशों को मिलाकर उनकी समानता एवं भिन्नता दिखाता है। समान उपांशों को अक्सर समान अंशों में ही पाया जाता है। लेकिन अन्य अंशों मे उपस्थित समान उपांशों को भी अंकित किया जाता है।
जिस कविता या गीत में कोई भी पद्य विभाजन नहीं है, उस कविता या गीत को एक ही उपांश के रूप में प्रस्तुत किया गया है, यानी उसके अंश और उपांश को एक ही माना गया है।
- शब्द – इस सबसे सूक्ष्म स्तर में, प्रभेद बराबर उपांशों के शब्दों को मिलाकर, उन शब्दों की समानता एवं भिन्नता दिखाता है।
प्रभेद कार्य - प्रणाली
(टिप्पणी - सोफ्टवेयर की खातिर इस भाग में सब शीर्षक, प्रतिफल (results या output) इत्यादि को रोमन लिपि में लिखना पड़ा। )- मुख पृष्ठ के पिटारे पर उपस्थित ‘पाठान्तर’ पर क्लिक करें। एक कृतिसूची-जैसी तालिका खुलेगी।
- बाईं तरफ शीर्षक कोष्ठिका में पाठान्तर चिह्न पर क्लिक करें। अब उस रचना का अंश-स्तरीय पाठान्तर पन्ना खुलेगा।
अंश स्तरीय पाठान्तर
- अंश स्तरीय पाठान्तर में रंगीन आड़ी पट्टियाँ दिखायी देंगी। चयनित रचना के हर पाठरूप के लिये (चाहे पाण्डुलिपि पाठरूप हो या मुद्रित संस्करण हो) एक अलग रंग की पट्टी होगी। हर पट्टी को भाग किया गया है जो उसके संबंधित पाठरूप के अंशों को (अध्याय, अंक इत्यादि) दरसाता है। प्रत्येक रंगीन खंड को छायांकित (हल्के रंग से गहरे रंग तक) भी किया गया है ताकि इनको आसानी से देखा जा सका। पाठ की तुलना में अंश की जितनी लम्बाई हो, उसके अनुपात पट्टियों के खंड की चौराई ज्यादा या कम होती है।
छोटी कवितावॉं, छोटे गीतों एवं छोटे निबंधों का एक ही अंश होने के कारण, उनकी पट्टियों में छायांकित विभाजन नहीं हैं। पट्टियों के खंड शून्य से शुरु होकर क्रमांकित भी है, जैसे कि 1316/0 का मतलब हुवा उद्दिष्ट रचना के 1316 बं सं वाले संस्करण का प्राथमिक अंश; 1316/1 का मतलब हुवा 1316 संस्करण का द्वितीय अंश इत्यादि। - प्रस्तुत किसी भी पाठरूप को तुलना का आधार बनाया जा सकता है। यह करने के लिये, इच्छित पाठरूप की पट्टी पर माउस ले जायें; वह पट्टी का रंग और गहरा हो जायेगा।
- अब पट्टी के जिस खंड की तुलना करना चाहते हैं, उस खंड को चयनित करें। अंश का क्रमांक दाहिने ओर उपर के कोने में दिखेगा। अन्य पाठरूपों मे समान अंशों को लाल रंग से रेखांकित किया जायेगा।
- नीचे एक तख्ता प्रकट होगा जिसमें बुनियादी पाठरूप-अंश की तुलना में हर संबंधित अंश की समानता को प्रतिशत के हिसाब में दिखाया जायेगा। हर अंश-क्रमांक के पास एक छोटी पाठ-कड़ी चिह्नित रहेगी। इस पर क्लिक करने से एक छोटा पन्ना खुलेगा जिसमें चयनित अंश का पाठ दिया जायेगा।
- नीचे तख्ते के सबसे बाईं वाली कोष्ठिका में बुनियादी-अंश की संख्या पर क्लिक करने से उस बुनियादी अंश को आधार बनाकर उपांश पाठान्तर पन्ना खुलता है।
नीचे तख्ते में किसी अन्य पाठ पर क्लिक करने से, दाईं तरफ एक रंगीन खड़ा तख्ता प्रकट होगा जिसमें बुनियादी पाठ के उपांशों और इस दूसरे चयनित पाठ के उपांशों को मिलाकर दिखाया जायेगा। जो उपांश मिलते हो, उनको भूरे रंग की डोरी से जोड़ा जयेगा।
उपांश स्तरीय पाठान्तर
- उपांश स्तरीय पाठान्तर अंश स्तरीय पाठान्तर के जैसे ही काम करता है।
- उपांश स्तरीय पाठान्तर खोलने के लिये उपर्युक्त ५वे नम्बर के अनुदेश का पालन करें। पूर्वचयनित पाठरूप के चयनित अंश के लिये एक रंगीन पट्टी दिखायी देगी। इस पट्टी पर क्लिक करने से कुछ और रंगीन पट्टियाँ प्रकट होंगी जिनमें प्रत्येक पट्टी एक अन्य पाठरूप के संबंधित अंश को दरसायेगी। हर पट्टी को भाग किया गया है, और पट्टियों के यह अलग अलग खंड संबंधित अंश के उपांशों (जैसे कि अनुच्छेद, उक्ति, पद्य इत्यादि) को दरसाता है।
- अब अंश की तुलना में उपांश की जितनी लम्बाई हो, उसके अनुपात खंड की चौराई ज्यादा या कम होती है।
छोटी कवितावॉं, छोटे गीतों एवं छोटे निबंधों का एक ही उपांश होने के कारण, उनकी पट्टियों में विभाजन (खंड) नहीं होंगे।
पट्टियों के खंड शून्य से शुरु होकर क्रमांकित भी है, जैसे कि 1316/0/0 का मतलब हुवा उद्दिष्ट रचना के 1316 बं सं वाले संस्करण (पाठरूप) के प्राथमिक अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/0 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/1 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का द्वितीय उपांश।
- पूर्वचयनित पाठ के जिस उपांश को आप अन्य पाठों के उपांशों से मिलाना चाहते हैं, उसको चुनने के लिये सबसे ऊपर वाली पट्टी में उसके प्रतिनिधिक खंड पर क्लिक करें। बाकि सब पाठरूपों की पट्टियों में समान उपांशों के प्रतिनिधिक खंड लाल रंग से रेखांकित किये जायेंगे। उपांश का क्रमांक दाहिने ओर उपर के कोने में दिखेगा।
- नीचे एक तख्ता प्रकट होगा जिसमें बुनियादी पाठरूप-उपांश की तुलना में हर संबंधित उपांश की समानता को प्रतिशत के हिसाब में दिखाया जायेगा। हर उपांश-क्रमांक के पास एक छोटी पाठ-कड़ी चिह्नित रहेगी। इस पर क्लिक करने से एक छोटा पन्ना खुलेगा जिसमें चयनित उपांश का पाठ दिया जायेगा।
- उपर दाहिने कोने में दिये गये वाममुखी एवं दक्षिणमुखी तीरों के सहारे, किसी भी पट्टी के अलग अलग खंडों तक पहुँचें, खासकर वे खंड जो इतने पतले हो कि उनका माउस से चयन करना कठिन हो।
- उपर दाहिने तरफ़ Grid View डिब्बे पर क्लिक करने से उपांश स्तरीय पाठान्तर के प्रतिफल को तालिका (grid) के रूप में देखा जा सकता है। यहाँ सबसे बाँयें वाले स्तंभ में उद्दिष्ट पाठरूप के उस अंश के अन्यान्य उपांशों की क्रम-संख्या दी गयी है। बाकि के स्तंभों में अन्य पाठरूपों के समान उपांशों की समानता को प्रतिशत के हिसाब में दिया गया है। इसके पहले वाले पन्ने में नीचे तख्ते में पाठरूपों के स्थानों के अनुसार, उनके इन संबंधित स्तंभों को 1, 2, 3 इत्यादि करके क्रमांकित किया गया है।
- नीचे तख्ते के सबसे बाईं वाली कोष्ठिका में बुनियादी-उपांश की संख्या पर क्लिक करने से उस बुनियादी उपांश को आधार बनाकर शब्द स्तरीय सूक्ष्म पाठान्तर (fine collation) पन्ना खुलता है।
शब्द स्तरीय (सूक्ष्म) पाठान्तर
- शब्द स्तरीय सूक्ष्म पाठान्तर के प्रतिफल एक पन्ने पर चार विभागों में दिखाया जाता है। बुनियादी पाठ का नाम (अंश और उपांश संख्या के साथ) उपर शीर्षक-जैसा लिखा जाता है। अन्य पाठरूपों को (संबिधित अंश और उपांश संख्या के साथ) चार विभागों के बाहर बाँयें स्तंभ में सूचीबद्ध किया गया है।
- उपर बाँयें वाले डिब्बे में बुनियादी पाठ-उपांश का पाठ दिया जायेगा।
- नीचे बाँयें वाले डिब्बे में अन्य किसी एक पाठरूप का उपांश-पाठ दिया जायेगा। आप जिस पाठरूप का संबंधित उपांश-पाठ देखना चाहते हैं, उस पाठरूप को आप बाँयें वाले सूची में से चुनें।
- उपर दाहिने वाले डिब्बे में बुनियादी उपांश-पाठ फिर दिया जायेगा। अंतर यह कि इस डिब्बे में पाठ को अलग अलग रंगों से रंगाकित किया जायेगा ताकि इस पाठरूप के और अन्य पाठरूपों का मेल आसानी से दिख सके।
- काला रंग का मतलब हुआ कि वह शब्द बाकि सब पाठरूपों में बिलकुल एक-समान है
- लाल रंग का मतलब हुआ कि कम से कम एक अन्य पाठरूप में वह शब्द सिर्फ लगभग समान है। शब्द पर क्लिक करने से इस शब्द के दूसरे रूपों को नीचे दाहिने वाले डिब्बे में दिखाया जायेगा।
- नील रंग का मतलब हुआ कि शब्द बुनियादी उपांश-पाठ में मौजूद है, पर कम से कम एक अन्य पाठरूप में अनुपस्थित है। शब्द पर क्लिक करने से नीचे दाहिने वाले डिब्बे में एक उचित संख्या के पास एक बिन्दु दिखेगा। इससे जाना जायेगा कि कौन से पाठरूप में शब्द अनुपस्थित है।
- हरा रंग का मतलब हुआ कि शब्द बुनियादी उपांश-पाठ में अनुपस्थित है पर कम से कम एक अन्य पाठरूप में मौजूद है। हरे बिन्दु पर क्लिक करने से नीचे दाहिने वाले डिब्बे में शब्द दिखाया जायेगा। किन पाठरूपों में यह शब्द उपस्थित है, यह भी नीचे दाहिने वाले डिब्बे से जाना जा सकता है।
बिन्दु का मतलब हुआ कि चयनित पाठ में शब्द अनुपस्थित है जो कम से कम एक अन्य पाठरूप में बिलकुल वहीं स्थान में वर्तमान है।
पाठरूपों एवं संस्करणों के नाम
पाठरूप एवं संस्करण को निम्नलिखित तरीकों से नामांकित किया गया है –- मुद्रित लेखों के विषय में : बँगला कृति के लिये बं सं के अनुसार प्रकाशन-वर्ष के चार अंक; अँग्रेज़ी कृति के लिये, अंतरराष्ट्रीय वर्षांक के अनुसार प्रकाशन-वर्ष के चार अंक।
अगर एक ही साल में एक से अधिक पाठरूप प्रकाशित हुए हो, तो उन्हें रोमन अक्षरों के क्रम (a, b, c इत्यादि) से पहचाना गया है। - पाण्डुलिपियों के विषय में :
रवीन्द्रभवन में मूल पाण्डुलिपि-क्रमांक के अनुसार [R+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘बँगला पाण्डुलिपि फायिलें’ (Bengali Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [B+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि फायिलें’ (English Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [E+पाण्डुलिपि संख्या] ;
और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की पाण्डुलिपि होने पर [H+पाण्डुलिपि संख्या]।
मेल प्रतिशत विधि
शब्द मेल
१-४ वर्णों के शब्दों को बिलकुल एक समान माना जायेगा अगर हर अक्षर मिलता हो। जो शब्दों में चार से अधिक वर्ण हो, उन शब्दों के विषय में, अतिरिक्त हर चार वर्णों के लिये एक वर्ण का अंतर स्वीकारा जायेगा : अर्थात् ५-८ वर्ण वाले शब्दों में अगर केवल एक वर्ण असमान हो, तब भी उन शब्दों को एक समान माना जायेगा; तथा ९-१२ वर्ण वाले शब्दों में अगर दो वर्णों तक की असमानता हो, तब भी उन शब्दों को एक समान ही माना जायेगा, इत्यादि।
टिप्पणी :
१. वर्णों में अ-कार (অ-কার) के अलावा स्वरों को भी गिना जायेगा। युक्ताक्षरों के हर व्यंजन को एवं हर स्वर को अलग वर्ण माना जायेगा। तथा, কাল के ३ वर्ण, বর্ষা के ४ वर्ण , নম্রতা के ५ वर्ण, और রবীন্দ্র্নাথ के ९ वर्ण हैं।
२. विरामादि चिह्नों को वर्णों में नहीं गिना जायेगा। तथा योजक चिह्न (hyphen) को, उत्संबोधन चिह्न (apostrophe) को, और उद्धरण चिह्न (quotation marks) को भी वर्णों में नहीं गिना जायेगा।
अंशों एवं उपांशों में मेल - प्रतिशत
- अंशों एवं उपांशों के विषय में, आम तौर पर बुनियादी पाठ और तुल्य पाठ में दोनों तरफ़ से ६०% (या अधिक) मेल होने पर उन्हें समान पाठ माना जायेगा।
- यदि कोई पाठ में एक लम्बे अंश या उपांश को दो या अधिक भागों में बाँटा गया हो, तब उपर्युक्त हिसाब उनके लिये नहीं बैठेगा। हिसाब मिलाने के लिये, किसी दो पाठों में जब एक ही तरफ़ से ६०% (या अधिक) का मेल हो, तब दूसरी तरफ से मामूली तौर पर १५% का tension count दिया जायेगा। जहाँ tension count १५% से अधिक होगा, वहाँ उन दो अंशों/उपांशों को समान माना जायेगा।
- लेकिन इस दूसरे हिसाब के कारण कुछ असमान पाठों को भी समान दिखाया जा सकता है, खासकर जहाँ पाठों में १५% का आकस्मिक मेल यादृच्छिक शब्दों के कारण हो जाता है। ऐसा होने की संभावना बढ़ती है जहाँ उपांश बहुत ही छोटे हो (जैसे कि एक या कुछ ही शब्दों के उपांशों में)।
पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि बहुत छोटे मेल प्रतिशत (३०-३५% से कम) को वास्तविक पाठ देखे बिना नहीं स्वीकारे। विशेषकर तब इसे नहीं स्वीकारे, जब अन्य संबंधित पाठों के साथ उस ही पाठ का ६०% (या अधिक) का मेल दिखाया जा रहा हो।
- कुछ पाठों में एक ही शब्द या वाक्यांश बार बार मिलते हैं – जैसे कि नाटकों के नाट्य-निर्देश या वृन्दगानों की स्थायी पंक्तियाँ इत्यादि। इसका एक परिणाम यह है कि असमान यादृच्छिक अंशों/उपांशों में बहुत अधिक मेल प्रतिशत (८०-८५%+, कई बार पूरे १००%) बार बार दिखाया जा सकता है। इस समस्या का समाधान हमने ऐसे किया है - बारबार अगर अन्य अंशों/उपांशों का और किसी एक ही अंश/उपांश का मेल प्रतिशत बहुत अधिक (८५% +) हो, तब केवल प्राथमिक मेल को ही पाठान्तर प्रक्रिया में स्वीकारा जायेगा।