स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस ऍण्ड रेकॉर्डस
निदेशक : प्राध्यापक अम्लान दाशगुप्त
संयुक्त निदेशक : डा. अभिजित गुप्त
स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डस की स्थापना अगस्त २००३ ई. में हुई । यादवपुर विश्वविद्यालय के अनोखे अंतर्विषयक अध्ययन केन्द्रों (Interdisciplinary Schools) में से यह एक है।
स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डस की विविध एवं अबद्ध कार्यसूची है लेकिन स्कूल का सामान्य उद्देश्य है मानव समाज एवं सांस्कृतिक जीवन के शाब्दिक आधार का संरक्षण एवं अध्ययन करना । स्कूल के कार्यसूची में यह सब शामिल हैं :
- पाण्डुलिपियों एवं मुद्रित पाठों का इलेक्ट्रॉनिक एवं मुद्रित संपादन करना, खासकर उन पाठों का जिसके संपादन में अंतरविषयक ज्ञान की ज़रूरत हो
- सांस्कृतिक चर्चा एवं पाठविज्ञान अनुसंधान की खातिर, तथ्यभण्डार का (डेटाबेस), सूची का, अनुक्रमणिका का, स्थान पंजी का इत्यादि अन्य सांदर्भिक उपकरणों और खोज व्यवस्थावों का निर्माण करना
- विशेषकर बँगाल में और भारत में मुद्रण एवं प्रकाशन के इतिहासों का अध्य्यन करना
- मौखिक और लोक साहित्य तथा इतिहास का, एवं साक्षात्कार और अन्य मौखिक पाठों का अभिलेखन एवं संरक्षण करना
- अंतर-क्षेत्र एवं अंतर-माध्यम प्रलेखन करना (यानी एक विषय, तिथि इत्यादि संबंधित भिन्न-भिन्न माध्यम के भिन्न-भिन्न तथ्य इकट्ठा करना)
- क्षणिक वस्तुवों (पाठ इत्यादि) का संग्रहण एवं संरक्षण करना
- भारत में सांस्कृतिक सूचना विज्ञान (cultural informatics) के लिये उपयुक्त साधन बनाना, खासकर ऐसे काम लिये उपयुक्त सॉफ्टवेयर बनाना
- स्कूल के उत्पादनों को मुद्रित एवं डिजिटल रूप में प्रकाशित करना
स्कूल के सुसुज्जित प्रायोजना स्थानों में उपयुक्त यंत्रों और संगणको की, एवं छायांकन, प्रलेखन, चित्र-निर्माण और चित्र-प्रदर्शन की, एवं अन्यान्य चीज़ों की व्यवस्था है । भारतीय भाषावों में संपादन एवं प्रलेखन के लिये कुछ विशिष्ट सॉफ्टवेयर पहली बार यहाँ उद्यत हुए हैं । अब तक स्कूल ने १२ पुस्तकों का और एक सी-डी का प्रकाशन भी किया है । यह विश्वकीर्तिमान एक ज्वाइंट रेकॉर्ड है कि ब्रिटिश लायिब्ररी के ‘संकटग्रस्त संग्रहों’ (Endangered Archives) की कार्यसूची के नीचे स्कूल ने पाँच अलग अलग प्रायोजनावों का निष्पादन किया है । स्कूल का खास निधिकरण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, सर रतन टाटा ट्रस्ट, और ब्रिटिश काउंसिल द्वारा हुआ है ।
स्कूल में बहुत सारे साहित्यिक बँगला पाण्डुलिपियाँ संग्रहित हैं । इनमें सुधीन्द्रनाथ दत्त, बुद्धदेव बसु, शक्ति चट्टोपाध्याय, बादल सरकार, ज्योतिर्मयी देवी, अरुण कुमार सरकार एवं संजय भट्टाचार्य की कृतियाँ संरक्षित हैं, तथा देश पत्रिका के बहुत दिनों के संपादक, सागरमय घोष, की चिट्ठीपत्री भी । स्कूल में तपन सिंह के मौजूदा पटकथायें और दीनेन गुप्त के विद्यमान पटकथायें एवं ध्वनि पट्टियाँ भी संरक्षित है । फिल्म एवं नाट्य के दुनिया के प्रख्यात कलाकारों के साथ वीडियो साक्षात्कारों की एक माला भी स्कूल ने बनायी है ।
‘संकटग्रस्त संग्रहों’ प्रायजनावों में हमारी एक प्रायोजना थी प्रचलित बँगला सड़क साहित्य (street literature) का डिजिटल संग्रहण करना – यह संग्रह अभी भी बढ़ता जा रहा है । दूसरी प्रायोजना थी आदि बँगला नाटक का डिजिटल संग्रहण करना । एक तीसरी प्रायोजना थी बँगला भाषा की लुप्त छिलेट-नागरी लिपि में अवशिष्ट लेखों का संरक्षण एवं उनका अध्ययन करना ।
बाकि दो ‘संकटग्रस्त संग्रहों’ प्रायोजनायें स्कूल के एक प्रमुख क्रिया से संबंध रखती है । स्कूल की यह क्रिया है संगीत संरक्षण तथा साउंड-रिकॉर्डिंग अध्ययन । स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डस में एक बहुत बड़ा हिन्दुस्तानी संगीत संग्रहालय है जिसमें शुरुआती रिकॉर्डिंग के समय से लेकर आज तक के हिन्दुस्तानी संगीत के रिकॉर्डिंग संरक्षित हैं । रवीन्द्रनाथ-संगीत एवं आधुनिक बँगला संगीत का भी एक विशाल संग्रह स्कूल में उपस्थित है । स्कूल के इन क्रियावों के बारे में और जानने के लिये, इस पते पर जायें : http://www.archive-icm.org/
किसी भी भारतीय भाषा में अब तक एकमात्र लघु-शीर्षक सूची का - बँगला लघु-शीर्षक सूची (Bengali Short-Title Catalogue) का - सक्रियात्मक अड्डा हमारा स्कूल ही रहा है, बल्कि दुनिया में ऐसे बहुत कम ही लघु-शीर्षक सूची उपलब्ध हैं । अब तक बँगला लघु-शीर्षक सूची १८६७ ई. तक पूरी हुई है । इस सूची का एक अपना विशिष्ट सॉफ्टवेयर भी है । वास्तव में हमारा यह बँगला लघु-शीर्षक सूची संपूर्ण कृति-सूची संबंधित जानकारी देती है, जो साधारण लघु-शीर्षक सूची से कुछ अधिक विस्तृत है । सूची को इस पते पर (सबसे अच्छा Internet Explorer द्वारा) देखा जा सकता है – http://www.compcon-asso.in/projects/biblio/welcome.php?redirect=/projects/biblio/index.php
१८६७ से १९४७ तक के समय पर सूची का काम अभी जारी है । भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, के लिये बँगला भाषा से और बँगला भाषा में अनुवादित लेखों का एक तथ्यभण्डार भी स्कूल ने तैयार किया है ।
स्कूल ने कई अन्य प्रायोजनायें भी चलायी है - जैसे कि भारत के चित्र-कथावों पर (the comic book in India), और १९०५ ई. में बँगाल-विभाजन के विरोध में उठे आन्दोलन पर । पाण्डुलिपियों की प्रतिलिपि तथा इलेक्ट्रॉनिक पाठरूप बनाने का भी काम स्कूल द्वारा किया जाता है । इस विषय में ऑस्ट्रेलियन कवि, चार्ल्ज़ हार्पर, की पाण्डुलिपियों का एक पूरा इलेक्ट्रॉनिक पाठरूप को स्कूल ने सहयोग के साथ बनाया है, और अभी थॉमस हार्डी का द रिटर्न ऑफ द नेटिव (The Return of the Native) की पाण्डुलिपि पर स्कूल में काम हो रहा है ।
संपादन एवं प्रकाशन में (Editing and Publishing) एक अल्पकालिक प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम का संचालन भी स्कूल द्वारा होता है । और भारत के प्राथमिक डिजिटल मानविकीविद्या का (Digital Humanities) पाठ्यक्रम शुरु करने का हमारे प्रस्ताव को अभी हाल में ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्वीकारा है । ‘विचित्रा’ प्रायोजना के अलावा, स्कूल के वर्तमान प्रमुख क्रियावों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वित्तपोषण से इलेक्ट्रॉनिक संपादन, संगीत संरक्षण, और निजी संग्रहों का डिजिटलीकरण गिने जायेंगे । सर रतन टाटा ट्रस्ट के वित्तपोषण से, ब्रिटिश लाइब्ररी के सहयोग के साथ दक्षिण-एशिया के अभिलेखागार का डिजिटलीकरण की भी एक प्रायोजना जारी है ।
स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डस की क्रियावों के बारे में और जानने के लिये, इस पते पर जायें - http://www.jaduniv.edu.in/view_department.php?deptid=135