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বিচিত্রা: বৈদ্যুতিন রবীন্দ্র-রচনাসম্ভার

Bichitra: Online Tagore Variorum :: School of Cultural Texts and Records

विचित्रा: इलेक्ट्रॉनिक रवीन्द्ररचनावली :: स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्टस एण्ड रेकॉर्डज़

 
 

पाठान्तर नियमावली

त्रिस्तरीय पाठान्तर

हमारा प्रभेद सॉफ़्टवेयर किसी भी रचना के अलग अलग पाठरूपों/संस्करणों को तीन-तीन स्तरों में मिलाता है – अंशों (sections) एवं उपांशों (segments) का स्थूल पाठान्तर (‘gross’ or macro-collation) किया जाता है, और शब्दों का सूक्ष्म पाठांतर (‘fine’ or micro-collation) किया जाता है।

टिप्पणी – जिस तरीके से किसी लम्बी रचना का विभाजन किया जाता है, उसके कारण कभी कभी अध्याय, दृश्य इत्यादि के जिन अनुभागों को बीच एक लायिन अंतराल रखा गया है (जैसे कि किसी गद्यरचना में उपस्थित कविता के पद्यों के बीच), उन अनुभागों को प्रभेद के चलन में अलग अलग भागों या अंशों जैसे दिखाया जा सकता है।  

जिस कविता या गीत में कोई भी पद्य विभाजन नहीं है, उस कविता या गीत को एक ही उपांश के रूप में प्रस्तुत किया गया है, यानी उसके अंश और उपांश को एक ही माना गया है।   

प्रभेद कार्य - प्रणाली

(टिप्पणी - सोफ्टवेयर की खातिर इस भाग में सब शीर्षक, प्रतिफल (results या output) इत्यादि को रोमन लिपि में लिखना पड़ा। )  

अंश स्तरीय पाठान्तर

नीचे तख्ते में किसी अन्य पाठ पर क्लिक करने से, दाईं तरफ एक रंगीन खड़ा तख्ता प्रकट होगा जिसमें बुनियादी पाठ के उपांशों और इस दूसरे चयनित पाठ के उपांशों को मिलाकर दिखाया जायेगा। जो उपांश मिलते हो, उनको भूरे रंग की डोरी से जोड़ा जयेगा।

उपांश स्तरीय पाठान्तर

छोटी कवितावॉं, छोटे गीतों एवं छोटे निबंधों का एक ही उपांश होने के कारण, उनकी पट्टियों में विभाजन (खंड) नहीं होंगे।
पट्टियों के खंड शून्य से शुरु होकर क्रमांकित भी है, जैसे कि 1316/0/0 का मतलब हुवा उद्दिष्ट रचना के 1316 बं सं वाले संस्करण (पाठरूप) के प्राथमिक अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/0 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का प्राथमिक उपांश; 1316/1/1 का मतलब हुवा 1316 संस्करण के द्वितीय अंश का द्वितीय उपांश।

शब्द स्तरीय (सूक्ष्म) पाठान्तर

बिन्दु का मतलब हुआ कि चयनित पाठ में शब्द अनुपस्थित है जो कम से कम एक अन्य पाठरूप में बिलकुल वहीं स्थान में वर्तमान है।

पाठरूपों एवं संस्करणों के नाम

पाठरूप एवं संस्करण को निम्नलिखित तरीकों से नामांकित किया गया है –

रवीन्द्रभवन में मूल पाण्डुलिपि-क्रमांक के अनुसार [R+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘बँगला पाण्डुलिपि फायिलें’ (Bengali Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [B+पाण्डुलिपि संख्या] ;
रवीन्द्रभवन में ‘अंग्रेज़ी पाण्डुलिपि फायिलें’ (English Manuscript Files) क्रमांक के अनुसार [E+पाण्डुलिपि संख्या] ;
और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की पाण्डुलिपि होने पर [H+पाण्डुलिपि संख्या]।

मेल प्रतिशत विधि


शब्द मेल
१-४ वर्णों के शब्दों को बिलकुल एक समान माना जायेगा अगर हर अक्षर मिलता हो। जो शब्दों में चार से अधिक वर्ण हो, उन शब्दों के विषय में, अतिरिक्त हर चार वर्णों के लिये एक वर्ण का अंतर स्वीकारा जायेगा : अर्थात् ५-८ वर्ण वाले शब्दों में अगर केवल एक वर्ण असमान हो, तब भी उन शब्दों को एक समान माना जायेगा; तथा ९-१२ वर्ण वाले शब्दों में अगर दो वर्णों तक की असमानता हो, तब भी उन शब्दों को एक समान ही माना जायेगा, इत्यादि।
टिप्पणी :
१. वर्णों में अ-कार (অ-কার) के अलावा स्वरों को भी गिना जायेगा। युक्ताक्षरों के हर व्यंजन को एवं हर स्वर को अलग वर्ण माना जायेगा। तथा, কাল के ३ वर्ण, বর্ষা के ४ वर्ण , নম্রতা के ५ वर्ण, और রবীন্দ্র্নাথ के ९ वर्ण हैं।
२. विरामादि चिह्नों को वर्णों में नहीं गिना जायेगा। तथा योजक चिह्न (hyphen) को, उत्संबोधन चिह्न (apostrophe) को, और उद्धरण चिह्न (quotation marks) को भी वर्णों में नहीं गिना जायेगा।
अंशों एवं उपांशों में मेल - प्रतिशत

पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि बहुत छोटे मेल प्रतिशत (३०-३५% से कम) को वास्तविक पाठ देखे बिना नहीं स्वीकारे। विशेषकर तब इसे नहीं स्वीकारे, जब अन्य संबंधित पाठों के साथ उस ही पाठ का ६०% (या अधिक) का मेल दिखाया जा रहा हो।

यह कहने की ज़रूरत नहीं कि अगर किसी एक अंश/उपांश का ८५% मेल (या अधिक) मात्र एक बार मिले, तब उस मेल को पाठान्तर प्रक्रिया में अवश्य स्वीकारा जायेगा। इसका यह कारण है कि ऐसा मेल प्रायः हर बार वास्तविक होता है।